(21 जून विश्व संगीत दिवस पर संसार के सभी महानतम संगीतज्ञों को शत-शत नमन)

प्रदीप कुमार सिंह

21 जून को विश्व संगीत दिवस है। विश्व में सदा ही शान्ति बनाये रखने के लिए ही फ्रांस में इस दिवस को मनाने की शुरूआत हुई थी। जिस तरह से भारत आज दुनिया में योग दिवस का प्रतिनिधित्व कर रहा है, उसी प्रकार संगीत सिरोमणि भी उसे ही होना चाहिए। भारत में शास्त्रीय संगीत आदि काल से है। संगीत के आदि स्रोत भगवान शंकर हैं। उनके डमरू से तथा कृष्ण की बांसुरी से संगीत के सुर निकले हैं। किंवदन्ति है कि संगीत की रचना ब्रह्मा जी ने की थी। ब्रह्मा जी ने ज्ञान की देवी सरस्वती को संगीत की सीख दी। देवी सरस्वती ने नारद जी को, नारद जी ने महर्षि भरत को तथा महर्षि भरत ने नाट्यकला के माध्यम से जन सामान्य में संगीत को पहुंचाया। सूरदास की पदावली, तुलसीदास की चैपाई, मीरा के भजन, कबीर के दोहे, संत नामदेव की सिखानियाँ, संगीत सम्राट तानसेन, बैजु बाबरा, कवि रहीम, संत रैदास संगीत को सदैव जीवित रखेंगे। भारत के प्रसिद्ध संगीतकारों के जन्मदिवस को संगीत दिवस घोषित कर संयुक्त राष्ट्र संघ को मान्यता देने के लिए प्रस्ताव दिया जा सकता है।

21 जून 1982 को फ्रांस में पहली बार विश्व संगीत दिवस मनाया गया था। वर्तमान में विश्व के लगभग 110 देश प्रतिवर्ष इसे बड़े ही उल्लासपूर्ण ढंग से इस दिवस को मनाते हैं। विश्व संगीत दिवस को मनाने का उद्देश्य अलग-अलग तरीके से लोगों को संगीत के प्रति जागरूक करने के साथ ही संगीत विशेषज्ञ व विश्व के संगीत कलाकारों को एक अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर लाकर विश्व एकता तथा विश्व शान्ति का सन्देश सारी दुनिया को देना भी है। विश्व भर में इस दिन संगीत और ललित कलाओं को प्रोत्साहित करने वाले कई प्रेरणादायी कार्यक्रम आयोजित होते हैं।

संगीत के सात स्वर बीमारियों को छूमंतर कर सकते हैं। संगीत मन के भाव को बयां करने का बेहद सरल तरीका है। संगीत में लय, ताल का समावेश है तो संगीत थिरकने पर मजबूर कर देता है। लेकिन यही संगीत हमारे स्वास्थ्य को भी बेहतर कर सकता है। वैदिक काल में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जिनसे यह पूरी तरह से प्रमाणित होता है कि उस समय संगीत चिकित्सा शिखर पर रही होगी। ऊं का नाद स्वर इसी संगीत चिकित्सा का सर्वोपरि उदाहरण है।

मधुर लय भारतीय संगीत का प्रधान तत्व है। ‘राग’ का आधार मधुर लय है। विभिन्न ‘राग’ केन्द्रीय तंत्रिका प्रणाली से संबंधित अनेक रोगों के इलाज में प्रभावी पाए गए हैं। संगीत चिकित्सा का सिद्धांत, सही स्वर शैली तथा संगीत के मूल तत्वों के सही प्रयोग पर निर्भर करता है। भारत में प्रत्येक वर्ष 13 मई को संगीत चिकित्सा दिवस के रूप में मनाया जाता है। संगीत चिकित्सा आघात (स्ट्रोक) के शिकार व्यक्तियों को तेजी से ठीक होने में मदद करती है। वहीं कुछ विशेष शोध के आधार पर यह पता लगाया गया कि मोजार्ट के पियानो सोनाटा को सुनने से मिर्गी के मरीज में दौरों की संख्या कम की जा सकती है। चिकित्सा जगत में विशेषकर मानसिक रोगों में संगीत के योगदान को स्वीकारा गया है। जानवरों पर विशेषकर गाय तथा भैंस पर संगीत का सकारात्मक प्रभाव देखा गया है। संगीतमय वातावरण में इनकी दूध देने की मात्रा अधिक हो जाती है तथा उनका स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है।

यह एक सच्चाई है कि दुनिया का सबसे छोटा मानव भी अच्छे संगीत को पसंद करता है। सबसे छोटे मानव से हमारा आशय प्री मैच्योर शिशुओं से हंै। स्विस शोधकर्ताओं ने पाया है कि विशेष तौर पर तैयार संगीत को सुनने से ऐसे बच्चों का दिमागी विकास तेजी से होता है। शोधकर्ताओं ने जब फंक्शनल मैगनेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एफएमआरआई) से इन बच्चों के दिमाग का स्कैन किया तो पाया कि जिन बच्चों ने संगीत सुना था उनके दिमाग का बेहतर विकास हुआ था।

हिन्दी सिनेमा अर्थात बालीवुड शास्त्रीय तथा सुमधुर संगीत को घर-घर पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान कर रहा है। दादा साहेब फाल्के भारतीय सिनेमा के जनक के रूप में जाने जाते हैं। दादा साहब फाल्के के भारतीय सिनेमा में आजीवन योगदान के प्रतीक स्वरूप और 1969 में दादा साहब के जन्म शताब्दी वर्ष में भारत सरकार द्वारा दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की स्थापना उनके सम्मान में की गयी थी। आज यह भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार हो गया है। 21वीं सदी में भारतीय सिनेमा, संयुक्त राज्य अमरीका का सिनेमा हालीवुड तथा चीनी फिल्म उद्योग के साथ एक वैश्विक उद्योग बन गया है। फिल्म फेयर अवार्ड ने भी भारतीय संगीतमय सिनेमा जगत में लोकप्रियता प्राप्त की है। हालीवुड का सबसे लोकप्रिय अवार्ड यानी 91वां आस्कर अवार्ड 24 फरवरी 2019 को लास एंजलिस हालीवुड के डालबी थिएटर में आयोजित हुआ था।

देश में राष्ट्रीय स्तर पर ग्वालियर में उस्ताद अफीस खां के नाम पर स्थापित अकादमी के वार्षिकोत्सव, तानसेन महोत्सव, भातखण्डे संगीत महोत्सव या फिर वृंदावन में हरिदास जयंती के महोत्सव प्रतिवर्ष आयोजित होते हैं। इन महोत्सव में राष्ट्रीय स्तर के महान संगीतकार एक मंच पर एकत्रित होकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। जिस प्रकार सिद्ध पुरूष अपनी साधना से सिद्धी प्राप्त करते हैं। उसी प्रकार संगीत कलाकार साधना के तप से संगीत के सशक्त माध्यम में महारत हासिल करता है।

लखनऊ में संगीत, नृत्य, गायन, लोक नृत्य, नाट्य कला पेंटिंग, कोरियोग्राफी आदि के स्कूली छात्रों के अन्तर्राष्ट्रीय संगीत महोत्सव ‘सेलेस्टा’ का प्रतिवर्ष आयोजन किया जाता है। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य कलाओं के माध्यम से देश-विदेश की भावी एवं युवा पीढ़ी की बहुमुखी प्रतिभा के विकास के साथ ही उनके मानवीय एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण को विकसित करना है। सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ द्वारा यह आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है।

लखनऊ में 20 अप्रैल 2019 को आयोजित हुए ‘पाश्चात्य शास्त्रीय संगीत समारोह’ में 17 देशों एवं भारत के 11 राज्यों से पधारे 168 संगीतज्ञों की लाजवाब सामूहिक प्रस्तुतियों ने लखनऊवासियों को मंत्रमुग्ध कर दिया था। आज सारी दुनिया विज्ञान एवं टैक्नोलाॅजी के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ी हुई है, परन्तु संगीत लोगों के दिलों को जोड़ता है। महात्मा गाँधी के प्रिय भजनों ‘रघुपति राघव’ एवं ‘वैष्णव जन तो’ की पाश्चात्य शैली में प्रस्तुति ने समारोह को यादगार बना दिया था। सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ के 60 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में यह आयोजन किया गया था।

अब 21वीं सदी का तकनीकी दृष्टि से अति विकसित युग है। अब संगीत की धुनें शायद कंप्यूटर बनाएंगे। वो गीत भी लिखेंगे और हो सकता है कि आगे चल कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इतनी अक्लमंद हो जाए कि गीत गाए भी खुद ही। कंप्यूटर से सबसे पहले 1957 में एक धुन इलियाक स्वीट के नाम से तैयार की गई थी इसे अमरीका की इलिनाय यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर रिसर्चरों के इलियाक वन कंप्यूटर ने तैयार किया था। यूट्यूब चैनल पर अपनी धुनें पेश करने वाली गायिका टैरिन सदर्न कहती हैं कि एआई की मदद से तमाम विचारों को तकनीक की मदद से साकार करने की अपार संभावनाएं हैं। हाल ही में टैरिन ने अपने एलबम ब्रेक फ्री को एआई की मदद से तैयार किया। इसके लिए उन्होंने एम्पर, आईबीएम के वाटसन और गूगल के मैजेंटा साफ्टवेयर की मदद ली। संगीत की धुनें तैयार करने का काम 1987 में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेविड कोप ने सबसे पहले किया था। उन्होंने अक्लमंद मशीन की मदद से एक डेटाबेस का अध्ययन किया। इसमें तमाम तरह की धुनों, गीत-संगीत को इकट्ठा किया गया था। इसके बाद डेविड कोप के साफ्टवेयर ने 1000 धुनों की मदद से अपनी अलग तरह की धुनें तैयार करने में कामयाबी हासिल की थी।

भारत में प्रतिभाशाली संगीतकारों की कोई कमी नहीं है। जिनकी रचनाएँ, कविता और आवाज सुनकर दर्शक आज भी मंत्रमुग्ध हो जाते हंै। भारत के इन संगीतकारांे को अपनी मंजिल तक पहुंचने पर कोई नहीं रोक पाया। आज भारत में न जाने कितने करोड़ लोग होगंे जो पं0 रविशंकर सितार वादक, पं0 शिवकुमार शर्मा संतूर, पं0 विश्व मोहन शर्मा, पं0 हरि प्रसाद चैरसिया, बांसुरी, ए. आर. रहमान, नौशाद, राहुलदेव बर्मन, ओ.पी. नय्यर, हेमंत कुमार मुखोपाध्य, मोहम्मद रफी, सलिल चैधरी, रवीन्द्र जैन, अनिल बिस्वास, किशोर कुमार, जगजीत सिंह, मदन मोहन, मुकेश, लता मंगेशकर, आर. डी. बर्मन, इलैयाराजा, सोनू निगम, सुनीधि चैहान, अमित त्रिवेदी, हरिहरन, कार्तिक, दलेर मेहंदी, शान रोल्डन और मित्र आदि-आदि के संगीत तथा आवाज पर आज भी मर मिटने को तैयार हैं। इन महान संगीतकारों में से अनेक सारे विश्व को सुमधुर संगीत से वसुधैव कुटुम्बकम्, विश्व एकता तथा विश्व शान्ति का संदेश दे रहे हैं।

विश्व स्तर पर लोकप्रिय कुछ संगीतकारों के नाम इस प्रकार हैं – विश्व पटल पर माइकल जैक्शन का नाम सबसे लोकप्रिय है। अमेरिकी गायक-गीतकार प्रिंस एक उल्लेखनीय प्रतिभाशाली संगीतकार थे जिन्होंने पहली बार 1980े में अपने कई एलबम रिलीज के साथ दुनिया का ध्यान आकर्षित किया था। एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित संगीतकार, जिन्होंने अपने शक्तिशाली रेगे के साथ दुनिया भर में लाखों लोगों के दिल को छुआ, संगीत उद्योग में बाब मार्ले की मौजूदगी प्रेरणा के मामले में नजदीकी थी। अमेरिकी गायक-गीतकार मारविन गेई आत्मा शैली की एक किंवदंती थी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है। आत्मा संगीत अग्रणी और आर एंड बी, सुसमाचार और देश संगीत के फ्यूसर, रे चार्ल्स एक किंवदंती है और यह दुनिया के महानतम कलाकारों में से एक था। बहु-प्रतिभाशाली, आल-राउंड कलाकार लुई आर्मस्ट्रांग की उपस्थिति थी जो विश्व प्रसिद्ध है।

सूफी गायकी तथा उर्दू कब्बाली के बोल सीधे इनसान के दिल में उतरते हंै। संगीत वही अच्छा है, जो दिल को सुकून दे। संगीत एक इबादत है, जो इनसान को परमात्मा से जोड़ता है। एक लोकप्रिय हिन्दी फिल्म के संगीतमय गीत के प्रेरणादायी बोल इस प्रकार हैं – संगीत को ना रोके दीवार, संगीत जाए सरहद के पार। हो संगीत माने ना धर्म जात, संगीत से जुड़ी कायनात। संगीत की ना कोई जुबान, संगीत में है गीता कुरान। संगीत में है अल्लाह-ओ-राम, संगीत में है दुनिया तमाम। भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा विश्व संगीत दिवस के द्वारा साकार हो रही है। संगीत के द्वारा यह सन्देश सारी दुनिया में फैलाना है कि धर्म एक है, ईश्वर एक है तथा मानव जाति एक है। जय जगत।

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