नई दिल्ली: विवादित इस्लामिक धर्मगुरु जाकिर नाईक ने अपने खिलाफ जारी हुए गैर जमानती वारंट पर प्रतिक्रिया दी है। जाकिर नाईक ने कहा है कि यह वारंट ध्यान भटकाने की एक कोशिश है जो बगैर सूबतों के जारी किया है गया है। 193 करोड़ रुपये से ज्यादा की मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में द प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) अदालत ने नाईक को 31 जुलाई तक कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया है।

मीडिया को जारी किए गए इस बयान में जाकिर ने कहा है- 'मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर मेरे खिलाफ एक और वारंट क्यों जारी किया गया है, वो भी तब जब इसी तरह के दो वारंट कोर्ट 2017 में ही जारी कर चुका है। इस वारंट की कोई आवश्यकता नहीं थी, वो भी तब जब किसी तरह के सबूत मेरे खिलाफ नहीं मिले हैं या गलत सबूतों के आधार पर। यह केवल मुझे खबरों में बनाए रखने के लिए किया गया है तांकि देश के महत्वपूर्ण मामलों से ध्यान भटक सके।'

बयान में आगे कहा गया है, 'मैं दोहरा दूं, मुझे भारतीय न्यायपालिका पर भरोसा है लेकिन अभियोजन प्रणाली पर नहीं। भारत की अदालतों का हालिया इतिहास ऐसा रहा है कि अदालतों द्वारा निर्दोष घोषित किए जाने से पहले गिरफ्तार किए गए मुस्लिमों को 8, 10, 15, यहां तक कि 20 साल तक जेल में रहना पड़ा है। भारतीय एजेंसियों के इस रिकॉर्ड को जानने के बाद, मैं अपने जीवन और अपने अधूरे कार्यों को बर्बाद करना नहीं चाहता हूं।'

बयान के अंत में जाकिर ने कहा, 'मैं अपने पिछले प्रस्ताव को फिर दोहरा रहा हूं। अगर भारत का सर्वोच्च न्यायालय मुझे लिखित में देता है कि मुझे गिरफ्तार नहीं किया जाएगा और तब तक जेल में नहीं रखा जाएगा जब तक मुझे दोषी नहीं ठहराया जाता, मैं भारत लौट आऊंगा, और मैं खुद को अदालतों के समक्ष पेश होऊंगा।'