नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार का अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर प्रदर्शन कुछ खास प्रभावी नहीं रहा है। मोदी सरकार के शासनकाल के चार साल के दौरान अर्थव्यवस्था की प्रगति का मानक माने जाने वाली जीडीपी में करीब 1.5 फीसदी की कमी आ चुकी है। बात अगर राजकोषीय घाटे की करे तो यहां कुछ स्थिति बेहतर नजर आती है।

साल 2015-16 से 2018-19 के बीच राजकोषीय घाटे में आधा फीसदी की कमी आई है। इसके अलावा राजस्व घाटे में भी पिछले चार साल के दौरान 0.3 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। साल 2015-16 में राजस्व घाटा 2.5 फीसदी था जबकि 2018-19 में यह 2.2 फीसदी रह गया। सरकार की कुल कमाई और कुल खर्च के अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। सरकार कुल कमाई से अधिक खर्च होने पर बाजार से कर्ज़ लेती है। वहीं, सरकार की राजस्व प्राप्ति और राजस्व व्यय के बीच के अंतर को राजस्व घाटा कहते हैं।

सकल कर राजस्व (जीटीआर) में 1.1 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। साल 2015-16 में जीटीआर 10.8 फीसदी था वहीं साल 2018-19 में यह बढ़कर 11.9 फीसदी हो गया। साल 2014 में सरकार ने राजकोषीय घाटे को 4.1 फीसदी रखने का लक्ष्य निर्धारित किया था। वहीं इस बार इसे 3.3 फीसदी रखने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है। साल 2020-21 और 20121-22 में राजकोषीय घाटा 3 फीसदी रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है।

इस बार बजट में 11,22,015 करोड़ रुपये अप्रत्यक्ष कर अनुमानित है। यह जीडीपी का 5.3 फीसदी है। सरकार ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 70 हजार करोड़ रुपये डालने का प्रस्ताव किया है।

सार्वजनिक उपक्रमों में हिस्सेदारी बेच की कमाईः इस बीच सरकार ने सरकारी उपक्रमों में हिस्सेदारी बेच दोगुना कमाई की। सरकार ने 2019-20 में सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश के जरिये 105,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। इससे पहले अंतरिम बजट में 90 हजार करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा गया था। सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों में हिस्सेदारी बेच 84,970 करोड़ रुपये की कमाई की। इससे पहले सरकार ने विनिवेश के जरिये 75000 करोड़ रुपये के निर्धारित लक्ष्य से अधिक 100045 करोड़ रुपये जुटाए।