नई दिल्ली: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) फरवरी से लेकर जून महीने तक नीतिगत ब्याज दरों में 75 बेसिस पॉइंट्स की कटौती कर चुका है, इसके बावजूद इसका फायदा ग्राहकों को देने में बैंकों ने सुस्त रफ्तार अपना रखी है। इसका असर कॉर्पोरेट सेक्टर पर भी पड़ा है, जिसे जून 2019 की तिमाही में अपेक्षाकृत ज्यादा रकम ब्याज चुकाने में खर्च करनी पड़ी है।

एक आकलन के मुताबिक, ब्याज चुकाने पर खर्च में 22.16 का इजाफा हुआ, जिसकी वजह से जून 2019 की पहली तिमाही में भारतीय कंपनियों को इस मद में 65,485 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। ऐसा तब है जब आर्थिक मंदी ने दस्तक देनी शुरू कर दी है। उधर, दूसरी ओर कॉर्पोरेट सेक्टर के नेट प्रॉफिट में 11.97 प्रतिशत की गिरावट आई है। इसका असर टैक्स भुगतान में 10.48 प्रतिशत की कमी के तौर पर भी दिखा।

ये आंकड़े 2,179 कंपनियों के सैंपल पर आधारित हैं। आंकड़ों के मुताबिक, इन कंपनियों के ऑपरेटिंग मार्जिन पर भी असर पड़ा है। इसमें 34.30 बेसिस पॉइंट्स की कमी होकर यह 14.84 प्रतिशत हो गया। ऑटोमोबाइल और कुछ दूसरे सेक्टरों में आई सुस्ती के मद्देनजर ये आंकड़े परेशान करने वाले हैं।

एक सरकारी बैंक के अधिकारी के मुताबिक, इस साल नीतिगत ब्याज दरों में 75 बेसिस पॉइंट्स की कमी का कॉर्पोरेट पर जल्द असर पड़ता नहीं नजर आता क्योंकि उनके पुराने लोन हैं जो ज्यादा ब्याज दर पर सालों पहले लिए गए थे। कॉर्पोरेट को नए लोन उनकी क्रेडिट रेटिंग के मुताबिक कम दरों पर अब दिए जाएंगे।

बता दें कि हाल ही में RBI ने अपनी मौद्रिक समीक्षा के तहत रेपो रेट में 35 बेसिस पॉइंट्स की कमी की थी। इस तरह केंद्रीय बैंक 2019 में ही ब्याज दरों में 110 बेसिस पॉइंट की कटौती कर चुका है। पुराने लोन और स्लोडाउन की समस्या से जूझ रही कंपनियों को ब्याज दरों में नरमी फिलहाल कोई ज्यादा फायदा नहीं पहुंचाएंगी।

वहीं, कुछ बड़ी कंपनियों के लोन न चुकाने की वजह से बैंक भी नए कर्ज देने में कतरा रही हैं। इस वजह से कुछ सेक्टरों को जरूरी कर्ज नहीं मिल पा रहा। अधिकारी के मुताबिक, बढ़ते एनपीए और NBFC सेक्टर में नकदी की समस्या के मद्देनजर बैंकों ने कर्ज देने को लेकर बने नियमों को और कड़ा कर दिया है। बता दें कि हाल ही में एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख ने भी सुझाव दिया था कि बैंकों को कर्ज देने के मामले में उदार होना होगा और जोखिम उठाने होंगे।