नई दिल्ली: रिटायर्ड सैन्य अफसरों और नौकरशाहों के एक समूह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राष्ट्रपति के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसके जरिए संविधान के आर्टिकल 370 के उन प्रावधानों को खत्म कर दिया गया, जिससे जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा मिलता था। मोदी सरकार ने आर्टिकल 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म करने का फैसला 5 अगस्त को लिया था। इससे एक दिन पहले, सरकार ने ऐहतियात बरतते हुए कश्मीर में इंटरनेट, टेलिफोन, टेलिविजन आदि सेवाओं पर बंदिशें लगा दी थी।

याचिका लगाने वालों में राधा कुमार भी शामिल हैं जो 2010- 11 में जम्मू-कश्मीर के लिए गृह मंत्रालय के ग्रुप ऑफ इंटरलोक्यूटर्स के सदस्य रह चुके हैं। इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं में जम्मू-कश्मीर कैडर के पूर्व आईएएस हिंदल हैदर तैयबजी, रिटायर्ड एयर वाइस मार्शल कपिल काक भी शामिल हैं। काक इंस्टिट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज ऐंड एनालिसिस के डिप्टी डायरेक्टर भी रह चुके हैं। याचिकाकर्ताओं में रिटायर्ड मेजर जनरल अशोक कुमार मेहता, केरल के पूर्व आईएएस गोपाल पिल्लई भी शामिल हैं। पिल्लई 2011 में केंद्रीय गृह सचिव के पद से रिटायर हुए थे।

बता दें कि यह आर्टिकल 370 पर सरकार के फैसले को चुनौती देने से जुड़ी सातवीं ऐसी याचिका है जो सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है। इससे पहले, छह और याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित हैं। ताजा याचिका ऐसे वक्त में दाखिल की गई है, जब कश्मीर में हालात धीरे धीरे सामान्य होते दिख रहे हैं। कश्मीर घाटी में कड़ी सुरक्षा के बीच लोगों की आवाजाही पर पाबंदियों में शनिवार को ढील दी गई और शहर के कुछ इलाकों में लैंडलाइन फोन सेवा बहाल कर दी गई।

अधिकारियों ने बताया कि कश्मीर के 35 पुलिस थाना क्षेत्रों में पाबंदियों में ढील दी गई है जबकि घाटी में कुल 96 टेलीफोन एक्सचेंज में से 17 को बहाल कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि घाटी में अब 50,000 लैंडलाइन फोन काम कर रहे हैं। अन्य इलाकों में व्यवस्थित तरीके से सेवा बहाल की जाएगी। अधिकारियों ने बताया कि सुरक्षा बल अब भी तैनात हैं और सड़कों पर बैरिकेड लगे हुए हैं। हालांकि, पहचान पत्र दिखाने के बाद ही लोगों को आवाजाही की अनुमति दी गई है।