– प्रदीप कुमार सिंह

आजादी कहें या स्वतंत्रता ये ऐसा शब्द है जिसमें पूरा आसमान तथा पूरी धरती समायी है। आजादी एक स्वाभाविक भाव है या यूँ कहें कि आजादी की चाहत मनुष्य को ही नहीं जीव-जन्तु और वनस्पतियों में भी होती है। अतीत में भारत अंग्रेजों की दासता में था, उनके अत्याचार से जन-जन त्रस्त था। खुली फिजा में सांस लेने को बैचेन भारत में आजादी का पहला बिगुल 1857 में बजा किन्तु कुछ कारणों से हम गुलामी के बंधन से मुक्त नहीं हो सके। उसके पश्चात देशभक्तों के 90 वर्ष के निरन्तर प्रयास तथा बलिदान द्वारा 15 अगस्त 1947 को हमें स्वतंत्रता की प्राप्ति हुई। भारत की स्वतंत्रता से प्रेरणा लेकर विश्व के 54 देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो गये। अन्याय तथा जोर-जबरदस्ती पर टिका अंग्रेजी शासन एक छोटे से द्वीप में सिमट गया।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि कोई भी कार्य करने के पूर्व हमें यह सोचना चाहिए कि इससे समाज के अन्तिम व्यक्ति को क्या लाभ होगा? राष्ट्रपिता गांधी की यह इच्छा पूरी करने के लिए विचारशील लोगों को एक साथ मिलकर नीचे लिखे बिन्दुओं को सरकार के समक्ष रखकर इस पर कानून बनाने के लिए ध्यान आकर्षित करना चाहिए :-

  1. नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित नेल्शन मण्डेला ने कहा था कि शिक्षा संसार का सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे समाज को बदला जा सकता है। विश्व एकता की शिक्षा इस 21वीं सदी की सबसे बड़ी आवश्यकता है। शिक्षा के अधिकार के स्थान पर गुणात्मक शिक्षा का अधिकार अधिनियम बनाया जायें। शिक्षा के अधिकार कानून के अन्तर्गत सरकार द्वारा गरीब बच्चों को प्रतिपूर्ति का पैसा स्कूल के बैंक खाते में भेजने के बजाय गरीब छात्रों के अभिभावकों को वाउचर के रूप में देना चाहिए। ताकि अभिभावकों को इस बात की स्वतंत्रता हो कि वह अपने बच्चे को किस सरकारी या निजी स्कूल पढ़ाना चाहता है? अभिभावक प्रतिपूर्ति के रूप में मिले वाउचर को स्कूल को अपने बच्चे की फीस के रूप में दे देगा। स्कूल संचालक वाउचर को अधिकृत बैंक में उसे जमा करके फीस की धनराशि बैंक से नगद के रूप में प्राप्त कर लेगा।

  2. विधायक तथा सांसद को सरकार चलाने के लिए मिलने वाले वेतन भत्ते की तरह देश के प्रत्येक वोटर को सरकार बनाने की फीस के रूप में वोटरशिप के अन्तर्गत कुछ धनराशि भुगतान करने के लिए निर्धारित की जायें। इस कानून के बनने से शत प्रतिशत वोटिंग होगी। सरकारी खजाने से कुछ धनराशि प्रत्येक वोटर को मिलने से असली लोकतंत्र का अनुभव देश की जनता को होगा। ए.टी.एम. तथा इण्टरनेट के युग में वोटर के खाते में पैसा बड़ी ही सरलता से भेजा जा सकता है।

  3. वर्तमान में केन्द्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों का धन डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर के अन्तर्गत लगभग 314 योजनाओं का पैसा बिना बिचैलियों के सीधे गरीब लाभार्थियों के खाते में पहुंच रहा है। बिचैलियों की भूमिका खत्म होने से पूरा का पूरा पैसा सीधे लाभार्थी के पास पूरी पारदर्शिता के साथ जा रहा है। लेकिन वोटरशिप के सिद्धान्त के अनुसार यह ऊंट के मुँह में जीरा है। आर्थिक गुलामी हटाने की यह एकमात्र अचूक दवा प्रत्येक वोटर को वोटरशिप का पैसा गरीब तथा अमीर का भेदभाव किये बिना देना है। यदि किसी एक वर्ग को वोटरशिप दी जायेगी तो योग्यता का प्रमाण पत्र देने के लिए सरकारी कर्मचारियों को बिचैलियों की भूमिका में लगाया जायेगा। इस कारण से देश में भ्रष्टाचार बढ़ेगा।

जब हमारा देश परतंत्र था उस समय विश्व में हमारा किसी प्रकार की कोई सम्मान नहीं था। न हमारा राष्ट्रीय ध्वज था, न हमारा कोई संविधान था। भारतीय संविधान में समस्त देशवासियों को समानता का अधिकार है। हमारा संविधान आज पूरे विश्व में विश्व एकता की प्रतिबद्धता के कारण अनुकरणीय एवं अनूठा है।

किसी समाज का स्वतंत्र चिन्तन, प्रगतिशीलता एवं सहिष्णुता का पैमाना संभवतः यही होता है कि वह समाज केे अन्तिम व्यक्ति से किस तरह पेश आता है। देश को स्वतंत्रता मिली, उसमें बलिदान देने वाले सदा के लिए अमर हो गए। सारे विश्व को आतंकवाद तथा युद्धों से मुक्त कराने का ठीक वैसा ही समय अब पुनः हमारे सामने चुनौती बनकर खड़ा है। धरती की चुनी हुई वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) बनाने के लिए अब फिर से राजनैतिक, बौद्धिक, नैतिक एवं सामाजिक क्रांति अवश्यंभावी है। उसका मोर्चा विचारशील तथा सामाजिक व्यक्ति सँभालेंगे। विश्व भर के ऐसे लोग विचारशील लोग एकत्र हो जाएँ और अपनी शक्ति तथा क्षमता के अनुरूप योगदान देने के लिए आगे आये। यह इस नये युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

स्वतंत्रता हमारे जीवन का एक मौलिक तथा अनिवार्य तत्व है। कालान्तर में स्वतंत्रता अपने देश की स्वतंत्रता के भाव तक सीमित थी। इस स्वतंत्रता का विकास अब मनुष्य की सब जगह और सब प्रकार के संकुचित बन्धनों से मुक्ति ही नहीं, बल्कि इससे भी आगे बढ़कर मानवीय व्यक्तित्व की स्वतंत्रता, विचार की स्वतंत्रता, सत्य की स्वतंत्रता बन जानी चाहिए। यह स्वतंत्रता हमारे जीवन की एक निष्ठा बननी चाहिए। हम रोटी के लिए, सत्ता के लिए, सुरक्षा के लिए, समृद्धि के लिए, राज्य की प्रतिष्ठा के लिए या किसी अन्य वस्तु के लिए इसके साथ समझौता नहीं करेंगे यह संकल्प हमारे अंदर दृढ़ होना चाहिए।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि धरती की सरकार के लिए अतीत में बहुत लोगों ने प्रयत्न किये लेकिन उनमें से अधिकांश की मंशा विश्व का तानाशाह बनने की तथा दूसरे देशों को गुलाम बनाकर शोषण करने की थी। लेकिन भारत के लोगों में अतीत काल से विश्व का तानाशाह बनने की तमन्ना कभी नहीं रही। भारत की सदैव से नीति जगत गुरू के रूप में विश्व का आध्यात्मिक मार्गदर्शन करने की रही है।

भारत की विश्व-भोग्या बनने की चाहत कभी भी नहीं रही, विश्वमाता की ममता रही। यहां पहले से ही धरती को माता कहा जाता रहा। भारत के बहुसंख्य लोगों की रग-रग में यह भाव बसा है। यह भाव उनके खून के कतरे-कतरे में मौजूद है। यह चेतना प्रत्येक भारतीय के जीन्स में प्रवेश करके हमारा वसुधैव कुटुम्बकम् का उदार तथा व्यापक स्वभाव बन गया है। इसलिए विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत जैसे देश के लिए विश्व का राष्ट्रीयकरण करना सबसे आसान है। लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करने वाली पूरी दुनिया के लिए भारत एक नई आशा की किरण है! पुरानी मान्यताएं, पुरानी बातें, पुराने युग के साथ विलीन हो रही हैं।

यह सारा विश्व एक बड़ा विश्वविद्यालय है। जहाँ रहकर मनुष्य को प्रकृति से प्रति क्षण कुछ नया सीखते हुए अपना शत प्रतिशत प्रयास करके समाज को अपना अर्जित अनुभव रोज के रोज लौटाना चाहिए। धरती माता का हमारे ऊपर एक बड़ा ऋण है। इस नाशवान देह को छोड़ने के पूर्व जीवन की सारी पूँजी दांव पर लगाकर इस ऋण को चुकाकर जाना ही संसार की सबसे बड़ी सफलता है। बुलन्दियों पर पहुँचकर भी जो न ठहरे वह ही इतिहास बनाते हैं।

एक सौ तीस करोड़ लोगों का विशाल तथा युवा भारत ही विश्व में शान्ति स्थापित करेंगा! नई सदी में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के युग का नव प्रभात हो रहा है। जिस साहस तथा बलिदान के बलबुते हमने गुलाम भारत को अंग्रेजी शासकों की गुलामी से आजाद कराकर जय हिन्द के संकल्प को साकार किया था उसी जज्बे के साथ अब आगे बढ़कर जय जगत अर्थात वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) का गठन करना है। जो व्यक्ति ईश्वर को जान लेता है फिर उसे धरती और आकाश की कोई ताकत लोक कल्याण की राह में आगे बढ़ने से रोक नहीं सकती।

वसुधैव कुटुम्बकम् अर्थात जय जगत के संकल्प को समय रहते पूरा करना सबसे बड़ी विश्वव्यापी समझदारी तथा दृष्टिकोण है। यूरोप के अनेक देश दो विश्व युद्धों की विभिषका से उकता गये थे। 1993 में संधि द्वारा यूरोपियन यूनियन के आधुनिक वैधानिक स्वरूप की नींव रखी गयी थी। दिसम्बर 2007 में लिस्बन समझौता जिसके द्वारा इसमें और व्यापक सुधारों की प्रक्रिया 1 जनवरी 2008 से शुरू की गयी है। यूरोप के 28 देशों ने विश्वव्यापी समझदारी का परिचय देते हुए अपनी यूरो मुद्रा, यूरोपियन पार्लियामेन्ट, यूरोपियन संविधान, वीसा मुक्त आवागमन की सुविधा, एक सेना आदि का गठन कर लिया। यूरो मुद्रा की ताकत अमेरिकी डालर के मुकाबले पर आने से अमेरिका घबरा गया उसने इंग्लैण्ड को यूरोपियन यूनियन से अलग होने के लिए प्रेरित किया ताकि यूरोपियन यूनियन की बढ़ती ताकत तथा समृद्धि कम हो जाये। इंग्लैण्ड के यूरोपियन यूनियन से अलग होने के बाद भी उसकी ताकत तथा समृद्धि पर कोई असर नहीं हुआ है।

यूरोपीय संघ के महत्वपूर्ण संस्थानों में यूरोपियन कमीशन, यूरोपीय संसद, यूरोपीय संघ परिषद, यूरोपीय न्यायालय एवं यूरोपियन सेंट्रल बैंक इत्यादि शामिल हैं। यूरोपीय संघ के नागरिक हर पाँच वर्ष में अपनी संसदीय व्यवस्था के सदस्यों को चुनती है। यूरोपीय संघ को वर्ष 2012 में यूरोप में शांति और सुलह, लोकतंत्र और मानव अधिकारों की उन्नति में अपने योगदान के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

एशिया के लगभग 51 देशों को भी यूरोपियन यूनियन के गठन तथा सफलता की सच्चाई से सीख लेकर प्रथम चरण के रूप में एशियन यूनियन का गठन करने की विश्वव्यापी समझदारी दिखानी चाहिए। एशियन यूनियन का गठन होने से सीमा विवाद, आतंकवाद तथा एशियन देशों के बीच युद्धों की समाप्ति हो जायेगी। एशियन संसद, मुद्रा, सेना, वीजा मुक्ति, संविधान आदि का गठन होने से विश्व शान्ति तथा विश्व एकता का बढ़ावा मिलेगा। इन देशों के नागरिकों को बढ़ते रक्षा बजट से मुक्ति मिल जायेगी। रक्षा बजट से बची धनराशि का प्रत्येक नागरिक को वोटरशिप के रूप में देने में किया जा सकेगा। अगले चरण में संयुक्त राष्ट्र संघ का शक्ति प्रदान करके विश्व सरकार के रूप में बदलने का मार्ग प्रशस्त होगा। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो फिर यह ही कहना पड़ेगा कि अब पछताने से क्या फायदा जब चिड़िया चुग गई खेत?

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