लखनऊ: भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), भारत सरकार द्वारा बायोमेडिकल साइंसेज में उत्कृष्ट योगदान के लिए भारतीय महिला वैज्ञानिकों को प्रतिवर्ष "क्षणिका ओरेशन अवार्ड" दिया जाता है। वर्ष 2018 के लिए, यह पुरस्कार इन्सा वरिष्ठ / एमेरिटस वैज्ञानिक एवं सर जेसी बोस नेशनल फेलो, डॉ अनुराधा दुबे को दिये जाने की घोषणा की गई है। वे वर्तमान में डिवीजन ऑफ मॉलिक्यूलर पैरासिटोलॉजी एंड इम्यूनोलॉजी, सीएसआईआर-सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट, लखनऊ में पदस्थ हैं।

डॉ अनुराधा ने विसरल लीशमैनियासिस की प्रतिरक्षा प्रणाली को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह एक उपेक्षित परंतु घातक उष्णकटिबंधीय बीमारी है। आपने इम्यूनो-प्रोटिओमिक दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए उन लीशमैनिया परजीवी प्रोटीन अथवा अणुओं की पहचान की है जिनमें टीएच-1 उत्तेजक गुण मौजूद हैं एवं जो संभावित वैक्सीन लक्ष्यों के रूप में विकसित किए जाने की क्षमता रखते हैं।

वर्तमान में, डॉ दुबे सिंथेटिक पॉलीवेलेंट एवं रिकोम्बिनेंट किमेरिक वैक्सीन डिजाइन करने की दिशा में काम कर रही है, जिसमें लीशमैनिया के संभावित टीएच-1 (Th1) उत्तेजक प्रोटीन से प्राप्त प्रमोटी टी-सेल एपिटोप्स शामिल हैं, जो इस रोग के स्थानिक क्षेत्रों (एंडेमिक एरियाज़) में संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी रोगनिरोधी एवं चिकित्सीय उपायों के रूप में उपयोगी हो सकेंगे। लीशमैनिया के उपचार के लिए उन्होने व्यापक प्रोटिओमिक विश्लेषण कर कुछ प्रमुख बायोमार्कर प्रोटीनों की पहचान की जो लीशमैनिया रोगजनन में महत्वपूर्ण जैविक कार्य करते हैं एवं जिनको इस रोग के उपचार के लिए लक्ष्य आधारित थेरेपी के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

शकुंतला अमीर चंद पुरस्कार, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष बायोमेडिकल विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण वैज्ञानिक योगदान के लिए दिया जाता है। वर्ष 2018 के लिए यह पुरस्कार डॉ सतीश मिश्रा, वरिष्ठ वैज्ञानिक, आणविक परजीवी एवं प्रतिरक्षा विज्ञान विभाग, सीएसआईआर-सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट, लखनऊ को दिये जाने की घोषणा हुई है।

डॉ सतीश मिश्रा ने मलेरिया की लीवर स्टेज बायोलॉजी पर अपना शोध केन्द्रित किया हुआ है, जिसमें वे मल्टी स्टेज इम्यूनिटी को प्रेरित करने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करते हुए लक्ष्य आधारित दवा की खोज और मलेरिया वैक्सीन विकसित करने पर कार्य कर रहे हैं। अभी उन्होंने वैक्सीन को एक माउस मॉडल में विकसित किया है, जिसमें जीन नॉक आउट तकनीक के माध्यम से मलेरिया परजीवी के लीवर में विकास हेतु आवश्यक जीन को निकाल दिया गया है। इससे भविष्य के संक्रमणों से लड़ने के लिए खुद को तैयार करने के लिए मेजबान प्रतिरक्षा प्रणाली (होस्ट इम्यून सिस्टम ) को अधिक समय मिल जाता है।

डॉ मिश्रा मलेरिया लीवर स्टेज बायोलॉजी के क्षेत्र में काम कर रहे हैं एवं प्लास्मोडियम परजीवी के विकास को होस्ट के लीवर में ही रोक देने हेतु आणविक प्रक्रियाओं के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे