नई दिल्ली: डेक्कन हेराल्ड की खबर के अनुसार रिजर्व बैंक के आंकड़ों से इस बात का खुलासा हुआ है कि मौजूदा आर्थिक मंदी की शुरुआत सरकार की तरफ से नोटंबदी की घोषणा के बाद से ही हो गई थी। खबर के अनुसार रिजर्व बैंक के आंकड़ों से स्पष्ट है कि 2016 के अंत में नोटंबदी की घोषणा के बाद पैदा हुए मुश्किल हालात के बाद से ही बैंकों की तरफ से उपभोक्ता वस्तुओं के लिए लोन देने में स्थिरता के साथ ही भारी कमी देखी गई।

मार्च 2017 के अंत तक बैंकों की तरफ से उपभोक्ता वस्तुओं के लिए रिकॉर्ड 20791 करोड़ रुपये का लोन दिया गया। नोटबंदी के बाद इसमें 73 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। नोटबंदी के बाद बैंकों ने महज 5623 करोड़ रुपये ही लोन दिया। वित्त वर्ष 2017-18 में इसमें 5.2 फीसदी की कमी हुई। साल 2018-19 में इसमें 68 फीसदी की भारी कमी देखने को मिली।

उपभोक्ता वस्तुओं के लिए लोन में कमी इस साल भी जारी है। मौजूदा वित्त वर्ष में अभी तक 10.7 फीसदी की कमी देखने को मिली है। विशेषज्ञों के अनुसार इस स्थिति के लिए नोटबंदी के बाद के हालात जिम्मेदार हैं। विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) की आय में कमी देखने को मिली है।

खबर के अनुसार 14वें वित्त आयोग के अध्यक्ष गोविंद राव का कहना है कि वास्तव में यह आय के आधार पर काम करता है। नोटबंदी के बाद बैंकों की तरफ से उपभोक्ता वस्तुओं के लिए लोन में कमी के पीछे दो कारण जिम्मेदार हैं। पहला एमएसएमई के सेक्टर को नकदी के भारी संकट से गुजरना पड़ रहा है।

कर्मचारियों के जाने के कारण इन उपक्रमों को बंद करना पड़ा। दूसरा, लोगों के पास खरीदने के लिए पैसा नहीं होने के कारण, बेरोजगारी बढ़ने के कारण, आय में कमी की वजह से मौजूदा स्टॉक का इकट्ठा हो जाना। गोविंद राव ने आगे कहा कि इसके लिए सरकार को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि उसने कभी एमएसएमई को लेकर कोई सर्वे कराया ही नहीं। इतना ही नहीं बैंकों की तरफ से उद्योगों को लोन देने में भी 3 फीसदी की कमी देखने को मिल रही है।