नई दिल्ली: देश में आर्थिक मंदी का असर अब सरकार के राजस्व पर भी देखने को मिल रहा है। साल 2019-20 के पहले साढ़े पांच महीनों में नेट डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में कमी देखने को मिल रही है। अप्रैल से सितंबर तक के बीच नेट डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में महज 4.4 लाख करोड़ करोड़ रहा।

यह बढ़ोतरी महज 5 फीसदी ही रही। सरकार ने बजट अनुमान में 13.35 लाख करोड़ रुपये अर्जित करने का अनुमानित लक्ष्य रखा है। ऐसे में इस अनुमानित रकम को हासिल करने के लिए शेष समय में सरकार को मौजूदा राशि से दुगना राशि राजस्व के रूप में अर्जित करनी होगी।

सितंबर का महीना सरकार के लिए डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है। इस समय कंपनियों को अपनी कुल कर देयता के मुकाबले 45 फीसदी जमा करना होता है। कंपनियां अपनी शेष 30 फीसदी और 25 फीसदी कर देयता को अगले दो किस्तों में चुकाती हैं। ये समय 15 दिसंबर और 15 मार्च होता है।

एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि मंदी के कारण एडवांस टैक्स कलेक्शन में वृद्धि एक अंक (6 फीसदी) में ही सिमटी रही है। वहीं पिछले साल समान अवधि में यह वृद्धि 18 फीसदी थी। इससे साफ है कि मंदी का असर डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन के रूप में देखने को मिल रहा है।

यह सरकार के अनुमान से काफी कम है। इससे सरकार का राजकोषीय गणित भी गड़बड़ा गया है। ऐसे में सरकार को जीडीपी का 3.3 फीसदी राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल करना भी एक चुनौती के समान होगा। सरकार ने इस अवधि में एक लाख करोड़ रुपये का रिफंड किया है, जो सिर्फ 4 फीसदी अधिक है। इस वित्त वर्ष के पहले साढ़े पांच महीने में ग्रॉस डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में महज 5.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

जीएसटी काउंसिल की मीटिंग से पहले डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन की इस तस्वीर के बाद सरकार के लिए काउंसिल की बैठक में इंडस्ट्री के दबाव के बावजदू जीएसटी की दरों में कटौती करना लगभग असंभव सा हो जाएगा। सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में भी 63000 करोड़ रुपये का डायरेक्ट टैक्स का लक्ष्य हासिल नहीं किया था।