लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।सच बात मान लीजिए चेहरे पर धूल है इल्ज़ाम आइने पर लगाना फजूल है।जिस जमीअत को हथियार बनाकर अपने लिए लड़ रहे है उस जमीअत का गौरवशाली इतिहास भी रहा है ये भी एक सच है लेकिन जिस तरह जमीअत को इस्तेमाल कर अपनी लडाई लड़ी जा रही है उससे यह बात साबित होती है कि मेरठ के फ़ैज़-ए-आम इंटर कॉलेज के मैदान में आयोजित जमीअत के सम्मेलन में किस तरह योजनाबद्ध तरीक़े से मुफ़्ती अतुकुर्रहमान रहमतुल्लहा को जमीअत से बेदख़ल कर क़ब्ज़ा किया था ठीक उसी तरह जैसे 1983 में दारूल उलूम देवबन्द पर क़ब्ज़ा किया था जब पीछे आयर्न लेडी इंदिरा गांधी थी आज वर्तमान सरकार को अपने साथ लेने के लिए क्या-क्या नही कर रहे इब्ने असद चाहे मुझे कुछ भी करना या कहना पड़े कहूँगा।हजरत मौलाना असद मदनी मरहूम ने जब दारूल उलूम देवबन्द पर क़ब्ज़ा किया या कराया था तब आप रुड़की में अपने किसी मुरीद के घर पर मौजूद थे और पल-पल की ख़बरें ले रहे थे जब मोबाईल तो नही हुआ करते थे लेकिन लैंडलाइन फोन हुआ करते थे उसी के माध्यम से अपने क़ब्ज़ाधारियों को दिशा-निर्देश दे रहे थे कुछ का कहना था कि हजरत किसी के मकान में नही सरकारी डाक बंगले में ठहरे हुए थे ये बात क़ब्ज़े के बाद दारूल उलूम देवबन्द के कैंप कार्यालय पर आयोजित समीक्षा बैठक के दौरान नायब मोहतमिम हजरत मौलाना वहीद्दुज्जमा रहमतुल्लहा ने बतायी थी जब हजरत मौलाना असद मदनी मरहूम ने ये कहा कि खुदा जानता है मुझे कुछ मालूम नही कि ये किस तरह हुआ और क्यों हुआ इसपर नायब मोहतमिम हजरत मौलाना वहीद्दुज्जमा मरहूम ग़ुस्से से तमतमाए खड़े हुए और कहने लगे कि झूट बोल रहे है आप आपको सब जानकारी थी आप रुड़की में बैठकर हर चीज़ पर नज़र रख रहे थे मरहूम मौलाना वहीद्दुज्जमा को इतना ग़ुस्सा आया था कि सर्दी होने के बाद भी पसीने पसीन हो गए थे यह मामला होने के बाद दारूल उलूम देवबन्द से मौलाना वहीद्दुज्जमा की उलटी गिनती शुरू हो गई थी हजरत मौलाना असद की ये पहचान रही है कि वह अपने मुख़ालिफ़ को ज़्यादा दिन तक बर्दाश्त नही करते थे वही हुआ मौलाना वहीद्दुज्जमा को कुछ दिन के बाद दारूल उलूम देवबन्द से जाना ही पड़ा था ये पूरा मामला मेने हजरत मौलाना वहीद्दुज्जमा की ज़ुबानी सुन रखा है ख़ैर ये तो इतिहास के पन्ने पलटने पर ज्ञात हुआ।इस ऑर्गेनाइज़ेशन पर जबसे इस परिवार का क़ब्ज़ा हुआ तभी से वह इससे अपना भविष्य सुधारने के लिए इस्तेमाल करते चले आ रहे है जब कांग्रेस राज्यसभा नही भेजती थी तो क़ौम -ए-मिल्लत बचाओ तहरीक शुरू हो जाती थी जैसे ही बातचीत अपने मुताबिक हो जाती सारी तहरीक लिफ़ाफ़े में बंदकर रख दी जाती थी वक़्त आने पर फिर ऑंख दिखाने के लिए लेकिन क़ौम और मिल्लत की किसी को कभी फ़िक्र नही रही हाँ ये बात सच है हजरत मौलाना असद मदनी के बाद की जमीअत ने हजरत मौलाना सैयद अरशद मदनी की कयादत में बहुत काम किया है इसमें कोई शक नही है मुझे कहने में गुरेज़ भी नही लेकिन अब उन्होने ने भी RSS के चीफ मोहन भागवत से मिलकर अपने पाक साफ दावन पर छींटाकशी करने का मौक़ा दे दिया है परन्तु फिर भी यह सिर्फ़ इतना सा विवाद है कि उन्होने मिलने से पहले किसी से विचार-विर्मश नही किया अगर कर लेते तो वो लोगों के निशाने पर नही आते वो अब भी सब जानकारी दे दे तो उनका मामला सही हो जाएगा ऐसा महसूस हो रहा है लोगों की टिप्पणियों से लेकिन शिवा जी के भक्त इब्ने असद ने शुरू से अब तक जो किरदार निभाया है उसे कॉम संदिग्ध मानती है और ये गलत भी नही है पूर्व मंत्री उप्र मौहम्मद आजम खान ने उन पर इज़रायल का एजेंट होने का आरोप लगाया था और अहमद बुख़ारी पर आरएसएस का एजेंट होने का आरोप लगाया था उनके आरोप लगाने के दो तीन दिन बाद न्यू शिवा जी के भक्त महमूद लखनऊ आए तो मेने उनसे ये सवाल किया था कि आजम खान का ये आरोप है आपके दफ़्तर पर रात के अंधेरे में इज़रायल उच्चायुक्त कार्यालय की गाड़ियाँ आती है तो इस पर न्यू शिवा जी के भक्त महमूद ने कोई जवाब न देकर ये कहा था कि वो हमारे बड़े है मैं इसपर कुछ नही कहूँगा शातिर दिमाग समझ गए कि बात जब निकलेगी तो दूर तक जाएगी इस लिए ख़ामोशी ही बेहतर समझी और कोई जवाब नही दिया।सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते हर दर पे जो झुक जाए उसे सर नहीं कहते क्या अहल-ए-जहाँ तुझको सितमगर नहीं कहते ,कहते तो हैं लेकिन तेरे मुँह पर नहीं कहते।शिवा जी के भक्त महमूद की अमित से हुई मुलाक़ात के बाद और बहुत कुछ साफ हो गया कि ये सब तय किया हुआ कार्यक्रम है और कुछ नही किसी ने बहुत अच्छा शेर कहा ज़मीर बेचने वालों ने खूब काम किया जिसे उरुज़ पे देखा उसे ही सलाम किया।