नई दिल्ली: गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में करीब दो साल पहले ऑक्सीजन की कमी से 60 से ज्यादा बच्चों की मौत के मामले में डॉ. कफील खान को विभागीय जांच के बाद आरोपों से मुक्त कर दिया गया है। उन पर चिकित्सा लापरवाही, भ्रष्टाचार, और घटना वाले दिन अपनी ड्यूटी ठीक से नहीं निभाने का आरोप लगाया गया था।

इन आरोपों के बाद कफील खान निलंबित चल रहे थे। जांच की रिपोर्ट कफील को गुरुवार को बीआरडी अधिकारियों द्वारा सौंपी गई। कफील इस मामले में 9 महीने जेल में भी बिता चुके हैं। इसके बाद से वह जमानत पर थे लेकिन निलंबित चल रहे थे। उन्होंने इस मामले में सीबीआई जांच की भी मांग की थी।

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार इस मामले की जांच रिपोर्ट 18 अप्रैल, 2019 को जांच अधिकारी हिमांशु कुमार, प्रमुख सचिव (स्टैंप और पंजीकरण विभाग) की ओर से यूपी के मेडिकल विभाग को सौंपा गया था। यह रिपोर्ट 15 पन्ने की है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कफील ने लापरवाही नहीं बरती और 10-11 अगस्त, 2017 की रात स्थिति को काबू में करने के लिए सभी प्रयास किये। रिपोर्ट में हालांकि इस बात का भी जिक्र है कि अगस्त, 2016 तक कफील प्राइवेट प्रैक्टिस में संलग्न थे लेकिन इसके बाद ऐसा नहीं रहा।

जांच की रिपोर्ट के अनुसार कफील ने अपने सीनियर अधिकारियों को ऑक्सिजन की कमी के बारे में पहले ही आगाह किया था। साथ ही इसमें इस का भी जिक्र है कि कफील बीआरडी में इंसेफेलाइटिस वार्ड के नोडल मेडिकल ऑफिसर इन चार्ज नहीं थे। रिपोर्ट में यह भी साफ किया गया है कि हाल में एक आरटीआई आवेदन पर दिये गये जवाब में यूपी सरकार ने माना था कि 11 मई, 2016 से असिस्टेंट प्रोफेसर भूपेंद्र शर्मा वार्ड के इन-चार्ज थे।

कफील ने आरोपों से मुक्त होने के बावजूद इसके बारे में पांच महीने तक जानकारी नहीं देने को लेकर सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। कफील के अनुसार सरकार असल दोषी को पकड़ने में नाकाम रही और इसलिए उन्हे बलि का बकरा बनाया गया। कफील के अनुसार मेडिकल शिक्षा विभाग ने अब उन्हें आकर प्राइवेट प्रैक्टिस करने के मुद्दे पर अपनी बात रखने को कहा है जबकि इसका बीआरडी मामले से कोई लेना-देना भी नहीं है। कफील ने कहा, 'सरकार को मुझसे माफी मांगनी चाहिए, पीड़ितों को मुआवजा मिलना चाहिए और घटना की जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए।'