लखनऊ: इंडिया हार्ट स्टडी (आई.एच.एस.) के निष्कर्षों से पता चला कि उत्तर प्रदेश के 21.7 प्रतिशत प्रतिक्रियादाता व्हाइट-कोट हाइपरसेंसिटिव हैं, जबकि 20 प्रतिशत को मास्क्ड हाइपरटेंशन हैं, और इस प्रकार, लगभग 41.7 प्रतिशत लोग गलत डायग्नोसिस व ‘मिस्ड’ डायग्नोसिस के खतरे में हैं, अर्थात् या तो उनकी डायग्नोसिस (जांच आदि के जरिए बीमारी की पहचान) ठीक से नहीं हुई या फिर समय से नहीं हो पाई। इस अध्ययन में प्रदेश के 1961 प्रतिभागी थे, जिनमें से 1345 पुरुष और 616 महिलाएं थीं।

मास्क्ड हाइपरटेंशन एक ऐसी स्थिति है जब व्यक्ति के रक्तचाप का पठनांक डाॅक्टर के यहां सामान्य होता है, लेकिन घर पर बढ़ा हुआ दिखता है; व्हाइट-कोट हाइपरटेंशन एक ऐसी स्थिति है जिसमें रक्तचाप का स्तर केवल क्लिनिक में ही अधिक दिखता है। व्हाइट-कोट हाइपरटेंसिव्स के रक्तचाप का सही पता नहीं होता और उन्हें एंटी-हाइपरटेंशन दवाएं लेने के लिए परामर्श दे दिया जाता है, जिसके चलते उन्हें अनावश्यक रूप से दवाई का सेवन करना पड़ता है। दूसरी तरफ, मास्क्ड हाइपरटेंसिव के साथ ऐसा हो सकता है कि उन्हें हृदय, किडनी एवं मस्तिष्क का खतरा होने के बावजूद उनकी बीमारी की पहचान नहीं हो पाती, और समय से पूर्व उनकी मृत्यु हो जाती है।

इंडिया हार्ट स्टडी (आई.एच.एस.) के निष्कर्षों में भारतीयों में मास्क्ड हाइपरटेंशन और व्हाइट-कोट हाइपरटेंशन की उच्च संभावना को रेखांकित किया गया है, और पहले ऑफिस विजिट (पहली बार डाॅक्टर के क्लिनिक में जाने पर) यह 42 प्रतिशत है। निष्कर्ष में यह भी पाया गया कि भारतीयों में आराम की स्थिति में हृदय गति की औसत दर प्रति मिनट 80 धड़कन है, जोकि प्रति मिनट 72 धड़कन की अपेक्षित दर से अधिक है। इस अध्ययन से एक और चौंकाने वाले तथ्य का पता चला है कि दूसरे देशों के विपरीत, भारतीयों का रक्तचाप सुबह की अपेक्षा शाम के समय अधिक होता है, जिसे ध्यान में रखते हुए डाॅक्टर्स को एंटी-हाइपरटेंशन दवा लेने के समय का परामर्श देने के बारे में दोबारा विचार करना चाहिए।

डाॅ. विराज सुवर्ण, प्रेसिडेंट – मेडिकल, एरिस लाइफसाइंसेज ने कहा, ‘‘पता नहीं चल पाने की स्थिति में, मास्क्ड हाइपरटेंशन घातक स्थिति है। परामर्शित दिशानिर्देशों के अनुसार, क्लिनिक के अलावा घर पर भी रक्तचाप पर निगरानी रखना महत्वपूर्ण है। उच्च रक्तचाप के उचित प्रबंधन एवं बेहतर स्वास्थ्य परिणाम हासिल करने हेतु, रक्तचाप की सही-सही माप महत्वपूर्ण है।’’

डाॅ. नकुल सिन्हा, कार्डियोलाॅजिस्ट, सहारा हाॅस्पिटल/डिवाइन हाॅस्पिटल, लखनऊ और आई.एच.एस. के संयोजक ने बताया, ‘‘इंडिया हार्ट स्टडी के आंकड़े इशारा करते हैं कि भारतीयों में आराम की स्थिति में हृदय के धड़कन की दर (आरएचआर) औसत से अधिक है, जिस पर ध्यान दिये जाने की जरूरत है। आरएचआर और हृदय के स्वास्थ्य के बीच निकट संबंध है। दरअसल, स्तनधारियों की जीवनावधि का हृदय दर के साथ विपरीत संबंध है, जिसका मनुष्य में नियमित शारीरिक गतिविधि से भी संबंध है। तीव्र हृदय दर से एडोथेलियन डिसफंक्शन, वैस्क्युलर स्टिफनेस एवं एथेरोस्क्लेरोसिस बढ़ जाता है। हृदय गति धीमी होने से व्यक्ति अचानक कार्डियक मृत्यु एवं हार्ट फेल्योर से भी सुरक्षित रहता है।’’

डाॅ. दीपक दीवान, नेफ्रोलाॅजिस्ट, अजन्ता हाॅस्पिटल, लखनऊ के अनुसार, ‘‘किडनी और शरीर के अन्य महत्वपूर्ण अंगों को स्वस्थ रखने में सुसंतुलित रक्तचाप की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रक्तचाप बढ़ जाने से इन प्रमुख अंगों को क्षति पहुंचने की संभावना होती है। वैश्विक रूप से परामर्शित स्वस्थ आदतों में से एक है, घर पर नियमित रूप से रक्तचाप का निरीक्षण।’’

यह अध्ययन अपने आप में विशिष्ट है क्योंकि यह रक्तचाप का पठनांक लेने की व्यापक प्रक्रिया का उपयोग कर प्रतिभागियों के ‘ड्रग-नैव’ सेट (जो व्यक्ति रक्तचाप-रोधी कोई दवा नहीं ले रहा हो) पर किया गया। जांचकर्ताओं ने नौ महीनों में 15 राज्यों के 1233 डाॅक्टर्स के जरिए 18,918 प्रतिभागियों (पुरुष और महिला) के रक्तचाप की जांच की। प्रतिभागियों का रक्तचाप लगातार 7 दिनों तक दिन में चार बार घर पर मापा गया।