गठिया रोग किसी भी तरह का हो, इसका उपचार आहार और सही उपचार की मदद से ही हो सकता है। गठिया रोग के कुछ कुदरती उपचार भी होते हैं।

गठिया अर्थात संधिशोथ रोग को दो विभागों में बांटा जा सकता है, उत्तेजक और अपकर्षक। पर गठिया रोग किसी भी तरह का हो, वह केवल आहार व सही उपचार के द्वारा ही काबू हो सकता है। गठिया रोग के कुछ कुदरती उपचार भी हैं जो इसकी पीड़ा को कम करते हैं और इसके प्रभाव को कम करने में सहायक होते हैं। तो तलिये जानें गठिया रोग के इलाज के कुछ घरेलू तरीके।

पूरी रात पीड़ादायक जोड़ पर लाल फलालैन बांधने पर काफी लाभ मिलता है।

जैतून के तेल से भी मालिश करने से भी गठिया की पीड़ा काफी कम हो जाती है।

गठिया के रोगी को कुछ दिनों तक गुनगुना एनिमा देना चाहिए ताकि रोगी का पेट साफ़ हो, क्योंकि गठिया के रोग को रोकने के लिए कब्जियत से छुटकारा पाना ज़रूरी है।

भाप से स्नान और शरीर की मालिश गठिया के रोग में काफी हद तक लाभ देते हैं।

जस्ता, विटामिन सी और कैल्सियम के सप्लीमेंट का अतिरिक्त डोज़ सेवन करने से भी काफी लाभ मिलता है।

समुद्र में स्नान करने से भी गठिया के रोग में काफी तक आराम मिलता है।

सुबह उठते ही आलू का ताज़ा रस और पानी को बराबर अनुपात में मिलाकर सेवन करने से भी काफी फायदा मिलता है।

सोने से पहले दर्द वाली जगह पर सिरके से मालिश करने से भी पीड़ा काफी कम हो जाती है।

गठिया के रोगी को ना ही ज्यादा देर तक खाली बैठना चाहिए और न ही आवश्यकता से अधिक परिश्रम करना चाहिए, क्योंकि गतिहीनता के कारण जोड़ों में अकड़न हो जाती है, और अधिक परिश्रम से अस्थिबंध को हानि पहुँच सकती है।

नियमित रूप से ६ से ५० ग्राम अदरक के पाउडर का सेवन करने से भी गठिया के रोग में फायदा मिलता है। अरंडी का तेल मलने से भी गठिया का रोग कम हो जाता है।

तांबा भी संधिशोथ से काफी हद तक राहत दिलाता है। कई लोगों को आपने देखा होगा कि वे ताम्बे का कड़ा या अंगूठी पहनते हैं या तांबे के बर्तन में पानी पीते हैं। कई लोगों का मानना है कि तांबे में ऑक्सिकरण रोधी गुण होते हैं जो जोड़ों में हो रही जलन को कम करने में सहायता करता है। हालाँकि यह अभी तक साबित नहीं किया गया है लेकिन तांबे का कड़ा या अंगूठी पहनने से कोई हानि नहीं पहुँच सकती।

मधुमक्खी का डंक संधिशोथ को दूर रखता है। ऐसा उन लोगों का मानना है जो मधुमक्खी पालक होते हैं, और जो अपने कार्य के दौरान मधुमक्खियों के कई डंकों का शिकार होते हैं। अनुसंधान के अनुसार मधुमक्खी के डंक से जलन और पीड़ा कम होती है, लेकिन कोई भी अनुसंधान यह साबित नहीं करता कि कितने डंक जोड़ों की पीड़ा कम कर सकते हैं।

जिन में भीगी हुई किशमिश से संधिशोथ में काफी हद तक लाभ मिलता है। किशमिश और जिन में शोथरोधी गुण होते हैं जो संधिशोथ के उपचार के लिए लाभदायक साबित होते हैं। अब तक किसी भी अनुसंधान के अनुसार यह साबित नहीं हो सका है कि कितनी मात्रा में जिन में भीगी हुई किशिमिश लेने से लाभ पहुँच सकता है, पर एक सप्ताह तक इसका सेवन करने से काफी लाभ मिलता है।