बैंकाक: भारत ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौते में शामिल नहीं होने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को आरसीईपी शिखर बैठक में अपने संबोधन में यह घोषणा की। प्रधानमंत्री ने कहा कि आरसीईपी समझौते को लेकर चल रही वार्ताओं में भारत द्वारा उठाए गए मुद्दों और चिंताओं को दूर नहीं किया जा सका है। इसके मद्देनजर भारत ने यह फैसला किया है।

न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि अभी समझौते को लेकर भारत की जरूरी चिंताएं अपनी जगह पर बनी हुई हैं। आरसीईपी समझौता इसकी मूल मंशा को नहीं दर्शाता है। इसका परिणाम उचित या संतुलित नहीं नजर आ रहा है।

सूत्रों के अनुसार आरसीईपी के मुख्य मुद्दों में जिस पर भारत ने चिंता जताई है, उनमें – आयात वृद्धि के खिलाफ अपर्याप्त संरक्षण, चीन के साथ अपर्याप्त अंतर, आधार वर्ष को 2014 के रूप में रखना और बाजार पहुंच और गैर-टैरिफ बाधाओं पर कोई विश्वसनीय भरोसा नहीं होना शामिल है। भारत का कहना है कि इस समझौते में चीन की प्रधानता नहीं होनी चाहिए। इससे भारत को व्यापारिक घाटा होने की आशंका है।

सरकार के सूत्रों के अनुसार, 'भारत का रुख व्यावहारिकता का मिश्रण है, जो गरीबों के हितों की रक्षा करने और भारत के सेवा क्षेत्र को लाभ देने के प्रयास की बात करता है न कि वह सेक्टरों में वैश्विक प्रतिस्पर्धा से दूर जाना चाहता हैं।'

इससे पहले माना जा रहा था कि भारत और आसियान सदस्यों समेत 16 देशों के नेता आपस में दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने को लेकर चल रही बातचीत के सफलतापूर्वक सफल होने की सोमवार को घोषणा कर सकते हैं। हालांकि, राजनयिक सूत्रों का कहना था इस समझौते पर कुछ नए उभरे मुद्दों को लेकर इस पर औपचारिक रूप से हस्ताक्षर की तारीख अगले साल फरवरी तक टल सकती है।

प्रधानमंत्री मोदी सहित इन देशों के नेता थाईलैंड में तीन दिवसीय आसियान सम्मेलन, पूर्व एशिया शिखर सम्मेलन और आरसीईपी व्यापार वार्ता के सिलसिले में मौजूद हैं। आरसीईपी को लेकर बातचीत सात साल से चल रही है।