नई दिल्ली: भारत की आर्थिक विकास दर बीती तिमाही (जुलाई-सितंबर) में पांच प्रतिशत से भी नीचे जा सकती है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, नोमुरा होल्डिंग्स और एनसीएईआर के अर्थशास्त्रियों ने ये आशंका जताई है। इन्होंने जुलाई-सितंबर तिमाही में विकास दर 4.2-4.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। सरकार 29 नवंबर को आधिकारिक डेटा जारी करेगी।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक 2012 में नया बेस इयर तय करने के बाद 4.2 प्रतिशत की वृद्धि दर सबसे नीची मानी जाएगी। इससे पहले की तिमाही में अर्थव्यवस्था 5 प्रतिशत की दर से बढ़ी थी।

बीबीसी ने भी एसीएईआर के हवाल से लिखा है कि मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भी सभी क्षेत्रों में सुस्ती देखने को मिल रही है। इस वजह से इस तिमाही में आर्थिक विकास दर 4.9 प्रतिशत रह सकती है। इससे पहले विश्व बैंक, आरबीआई और आईएमएफ भी चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की विकास दर के अनुमान को घटा चुके हैं।

भारत की आर्थिक विकास दर वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में अपने सबसे ऊंचे स्तर (8.1%) पर थी लेकिन इसके बाद से इसमें गिरावट देखने को मिली है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में तो यह छह साल के न्यूनतम स्तर (5%) पर पहुंच गई थी।

कंपनियों के लिए 20 बिलियन डॉलर टैक्स में कटौती के साथ आरबीआई ने इस साल पांच बार ब्याज दरों में कटौती की है जिससे अर्थव्यवस्था को गति मिल सके। एसबीआई के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष का कहना है कि हम दिसंबर में आरबीआई से दरों में बड़ी कटौती की उम्मीद कर रहे हैं। हालांकि इससे तत्काल कोई सुधार होगा इस पर संशय है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले हफ्ते कहा था कि कंपनियों नए निवेश की योजना बना रही हैं। इसका असर होने में थोड़ा वक्त लगेगा। कैपिटल इकोनॉमिक्स के शिलन शाह का कहना है कि वृद्धि दर में जिस भरपाई की भविष्यवाणी की जा रही थी वो भ्रामक निकला।

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि बाजार में मांग नहीं बढ़ रही जिससे उत्पादन घट रहा है। लोगों की खरीदने की क्षमता में कमी आई है। इस वजह से बेरोजगारी का संकट गहरा हो सकता है। हालांकि सरकार को उम्मीद है कि उसके द्वारा उठाए गए उपायों से जल्द ही मांग बढ़ेगी। इससे आर्थिक विकास दर में सुधार हो सकता है।