लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।महाराष्ट्र के सियासी शह और मात के खेल में मोदी की भाजपा बहुत ही बुरी तरह हारी है जिसका अंदाज़ा शायद मोदी की भाजपा की चाणक्य मंडली को नहीं था।राजनीतिक विशेषज्ञों ने क़यास लगाने शुरू कर दिए हैं कि ये तो बानगी भर हैं आगे-आगे देखिए क्या-क्या होता है एक के बाद एक मोदी की भाजपा राज्य गँवाती जाएगी।हालाँकि मोदी की भाजपा के रणनीतिकार यह बात मान नहीं रहे हैं उनका कहना है कि ये कुछ नहीं है हमारे ग्राफ में कोई गिरावट नहीं आई है यही ग़लतफ़हमी नुक़सानदायक साबित होती है ।

महाराष्ट्र के सियासी खेल में हुई उथल-पुथल से यें संदेश साफ़ है कि अब मोदी की भाजपा का ग्राफ़ लगातार नीचे गिरता जाएगा इसका अंदाज़ा सत्तारूढ़ नेतृत्व को भी हो रहा है मगर स्वीकार नहीं कर रहा है और करना भी नहीं चाहिए।मोदी की भाजपा की जीत का सिलसिला 2014 से शुरू हुआ था जब इन्होंने हिन्दू मुसलमान करके देश को बाँटने का काम किया था धार्मिक भावनाओं की नाव को बहुत दूर तक नहीं ले ज़ाया जा सकता है मार्च 2018 तक मोदी की भाजपा और उसके सहयोगियों की सरकारें देश के ज़्यादातर हिस्सों में थी लेकिन अब यह सिर्फ़ कुछ ही हिस्से में सिमट गई।

महाराष्ट्र में हुई सियासी हार ने मोदी की भाजपा को दोहरी चोट दी है क्योंकि वहाँ सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने के बाद भी सरकार बनाने की तमाम कोशिशें नाकाम साबित हुई बल्कि उसने अपना सबसे पुराना साथी भी खो दिया।वरिष्ठ पत्रकारों से चर्चा करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि संघ परिवार को चिंतित होने का समय आ गया है क्योंकि मोदी की भाजपा के पतन का सिलसिला झारखंड और दिल्ली में भी देखने को मिलेगा।झारखंड में अगले ही महीने चुनाव परिणाम आने हैं।इसके बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव होंगे वहाँ भी परिणाम मोदी की भाजपा के ख़िलाफ़ आने की संभावना है। केंद्र में सरकार होने की वजह से राज्यपाल की मदद से सत्ता में बने रहने का मकड़जाल जो बुना गया था वो फेल हो गया है उसकी हर सियासी चाल नाकाम रही।अब क्या अन्य राज्यों में छोटे-छोटे दल अपनी त्योरी चढ़ाकर मोदी और अमित शाह से बात करेंगे| जैसाकि राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अब इस जोड़ी की पकड़ न केवल एनडीए बल्कि राज्यों की सियासत पर ठण्डी पड़ती जाएगी।

सियासी पंडितों का मानना है कि देश में एक नए सियासी ध्रुवीकरण की संभावनाओं से इंकार नही किया जा सकता है।पिछले महीने जब महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावी नतीजे आए थे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सियासी पंडितों से कहा भी था कि क़यास लगाने शुरू न कर देना, उनको पता था कि आगे क्या होने वाला है।इन परिस्थितियों से साफ़ ज्ञात हो रहा कि मोदी की भाजपा की विरोधी पार्टियाँ आगे की रणनीति सबकुछ भूल कर तय नहीं करेंगी उनके सामने पूरा सियासी परिदृश्य होगा कि उन्हें अब क्या फ़ैसला करना चाहिए जहाँ तक सियासी पंडितों को लगता है कि जनता को मोदी की भाजपा का विकल्प देने का काम किया जाएगा जिससे मोदी की भाजपा को सियासी नुक़सान होने से कोई नहीं रोक पाएगा अब जनता हिन्दू मुसलमान की सियासत से तंग आ चुकी हैं उसे रोज़गार चाहिए अच्छी शिक्षा , सड़कें व अच्छी क़ानून-व्यवस्था चाहिए जो मोदी की भाजपा की सरकारें देने में नाकाम साबित हो रही है| गिरती अर्थव्यवस्था से लोग बेरोज़गार हो रहे हैं बड़े उद्योगपतियों को सर्दी में भी पसीने छूट रहे हैं और मोदी की भाजपा व उसकी सियासी रीढ़ RSS के चीफ कहते हैं कि गिरती अर्थव्यवस्था पर बात ही नहीं करनी चाहिए ।

ये सब हालात मोदी की भाजपा के विरूद्ध देश हित में विपक्षी पार्टियों के नेताओं को एक साथ बैठने पर मजबूर करेंगे जिसके बाद एक राष्ट्रीय विकल्प खड़ा होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है इसमें कांग्रेस की भूमिका आने वाले दिनों में एक बार फिर अहम होने जा रही है।शाम दाम दंड भेद अपना कर राज्यों में सत्ता बनाए रखने की कोशिश मोदी की भाजपा को छोटे दलों से दूर कर रही है जिनकी बैसाखियों के सहारे मोदी की भाजपा 2 से 303 तक पहुँची है और केन्द्र में सत्तारूढ़ हुई है अब वह उन्हें ही निगलने पर उतारूँ हो गई है जिसका उनको अहसास हो गया है। शिवसेना के साथ जो हुआ वह तो मात्र एक मिसाल भर है। महाराष्ट्र में संविधान की परवाह किए बिना राष्ट्रपति शासन हटाना और रातोंरात सरकार बना लेना बिना गुणाभाग के ये क्या दर्शाता है| यह भी सब समझ रहे हैं परिणाम आने के बाद 18 दिन किस तरह लगा दिए गए किसी तरह मोदी की भाजपा की सरकार बन जाए फिर भी कुछ नहीं हुआ। संयुक्त मोर्चा सरकार ने तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार को इसी तरह के फ़ार्मूलों का प्रयोग करते हुए हटा दिया था तब भाजपा के शीर्ष नेता स्व अटल बिहारी वाजपेयी को दिल्ली में आमरण अनशन पर बैठना पड़ा था आज की मोदी की भाजपा ने उससे ज़रा भी सबक़ नहीं लिया, अगर लिया होता तो शायद वह महाराष्ट्र में ये सब नहीं करते जो उन्होंने किया है।

संवैधानिक मामलों के जानकारों से बात करने पर पता चलता है कि इसमें कोई शक नहीं है कि समर्थन के पत्रों का सत्यापन किए बग़ैर ही राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने देवेंद्र को सरकार बनाने का मौक़ा दिया जिसे संवैधानिक नहीं कहा जा सकता है।ख़ैर महाराष्ट्र के बाद अब अगला महाराष्ट्र किस राज्य को बनाया जाएगा या मोदी की भाजपा खुद ही महाराष्ट्र बन जाएगी इस बात पर भी सियासी गलियारों में चर्चा का दौर शुरू हो चुका है।