लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।ग़ौरों की दलाली, मुखबिरी और झूटे शपथ पत्र देकर आज़ादी के मतवालों को फाँसी के फंदे तक पहुँचाने वाले आज देश भक्ति का पाठ पढ़ा रहे हैं और जिनके लाल आज़ादी के लिए शहीद हो गए थे उनको आज अपनी देश भक्ति का सबूत देने के लिए कहा जा रहा है कहने वाले वही लोग हैं जो कभी अपनी जान बचाने की अंग्रेजों के सामने दुहाई देते कि हम हिन्दुस्तानी नहीं है हम तो आपके ही साथ है।हमारे देश में हिन्दू मुसलमान एक साथ रहते आए हैं प्यार मोहब्बत के साथ एक दूसरे पर कोई आँच आने पर उसके लिए अपना खून बहाया करते थे। टीपूँ सुल्तान की फ़ौज का कमांडर हिन्दू ब्राह्मण था तो महाराणा प्रताप के तोपख़ाने का इंचार्ज एक मुस्लिम पठान था जिसने महाराणा प्रताप के लिए अकबर के ख़िलाफ़ शहादत दी थी अकबर महान का सेनापति महाराजा मानसिंह थे हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप को परास्त किया था।बहादुर शाह ज़फ़र को आज़ादी के दीवाने सैनिकों ने अपना मुखिया चुना था जबकि उनकी उम्र 1857 में 81 साल थी लेकिन उन्होंने इसकी परवाह किए बग़ैर उस पद को स्वीकार किया था इस देश की मिट्टी और आज़ादी के लिए अगर वह भी अंग्रेजों की दलाली स्वीकार कर लेते तो उनका वक़ार और महल (लाल क़िला) उनके परिवार के सदस्य सलामत रहते लेकिन नहीं उन्होंने उसको ठोकर मार दी यही वजह रही कि उनको खाने की थाली में खाना नहीं उनके बच्चों के सिर काटकर थाली में कपड़े से ढक कर परोसे गए थे बूढ़ा बेबस बादशाह इस देश की मिट्टी में दफ़्न होने के लिए तरसता ही दुनियाँ से रूखसत हो गया यें कहता हुए “ है कितना बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिए, दो ग़ज़ ज़मीन भी न मिली कुएँ यार में।इसका दर्द कभी संघी हिन्दू को नहीं हो सकता क्योंकि देश के लिए ऐसी शिद्दत और जज़्बा कहाँ से आएगा जिसका संघियों में घोर अभाव है जिसकी वजह आज़ादी की लड़ाई में उनका योगदान न होना है यें संघी गोरों की ग़ुलामी ही करते रहे अगर बलिदानी होते तो देश पर मर मिटने वालों की क़द्र होती।अश्फ़ाकउल्लाह खान और पंडित रामप्रसाद बिस्मिल ब्राह्मण एक साथ फाँसी पर चढ़ना चाहते थे इसे कहते हैं हिन्दुस्तान कि मरेंगे भी साथ और जिएँगे भी साथ।यें संघी हिन्दू देश भक्ति का फ़र्ज़ी लबाधा ओढ़ कर सत्ता में आए और देश के साथ दुश्मनी कर रहे हैं क्योंकि हमारी भोली भाली जनता को हिन्दू मुसलमान में बाँट कर दोनों में प्यार मोहब्बत की जगह नफ़रत फैला रहे हैं इन्हें पता नहीं कि हिन्दू मुसलमान उतने ही अलग है जितने दो माँ जाए भाई उनको जन्म देने वाली माँ एक ही है इसी मिट्टी की गोद में एक साथ खेले भी है लड़े भी है और एक साथ मिलकर हिन्दुस्तान के लिए अपना खून भी बहाया है।संघी हिन्दुओं को पता होना चाहिए कि हिन्दू मुसलमान हिन्दुस्तान की दो ऑंखें है इन संघी हिन्दुओं की एक आँख से काम नहीं चलेगा।मुसलमानों का हिन्दुस्तान के साथ एक दीवानगी की हद तक प्यार एक बार नहीं कई बार सिद्ध हुआ है इसी मिट्टी में चैन से सो गए आज भी यही जज़्बा है जिसमें रत्ती भर भी फ़र्क़ नहीं आया है और न आएगा ऐसा इतिहास बताता है।संघी हिन्दू की जहनीयत कुछ नहीं जानती वो क्या मुक़ाबला करेंगी आज़ादी के दीवाने हिन्दू मुसलमान का संघी जहनीयत को सिर्फ़ छल कपट करना आता है झूँठे फँसाने गढ़ना हिंसा के लिए भोले भाले लोगों को उकसाना देश को धर्मों और संप्रदायों में बाँटना यें सारी हरकतें ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगों में पायी जाती थी।संघी हिन्दुओं ने सत्ता में आने के बाद क्या किया नोटबंदी बिना किसी तैयारी के उसका परिणाम क्या रहा ये हम सबके सामने है।जीएसटी से व्यापार और व्यापारी का खून निचोड़ लिया आज तक भी जीएसटी में संशोधन हो रहे हैं सही तरीक़ा नहीं अपनाया गया बैंकों की हालत नाज़ुक बनी हुई है लाखों करोड़ का एनपीए हो गया है जिसकी वजह सरकार की मिलीभगत से या सीधे बैंकों का पैसा लेकर विदेश भाग गए और यें संघी सरकार देखती रही कारख़ाने फ़ैक्टरियाँ और अन्य संसाधन बंद होने को मजबूर हो गए और सरकार की सेहत पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ रहा है। किसान की हालत दिन प्रतिदिन दयनीय होती जा रही है और सरकार कोई कारगर कदम उठाने को तैयार नहीं है छात्र-छात्राओं को अच्छी शिक्षा और सस्ती शिक्षा हासिल करना कठिन हो गया है फ़ीस में बढ़ोतरी कर उन गरीब बच्चों की कमर तोड़ दी है जिनकी आय उतनी नहीं है जिससे वह बड़े संस्थानों में दाख़िला ले सके गरीब लोगों के बच्चे कहाँ पढ़ेंगे इसकी फ़िक्र संघी सरकार को नहीं है सरकारी स्कूलों कालेजों को बंद कर रहे हैं जो है उनमे शिक्षक नहीं हैं बिल्डिंग नहीं है हमें इस पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है लेकिन नहीं संघी सरकार लगी है अपना एजेंडा थोपने में CAB NRC ला रहे हैं।संघी हिन्दुओं की सरकार को आम आदमी का दर्द न तो दिखाई दे रहा है और न कराहने की आवाज़ सुनाई दे रही है इन्हें तो हिन्दू मुसलमान करना है न कि देश को आगे बढ़ाने या बढ़ने पर काम करना है।बंटवारा फिर से ज़ेरे-बहस है। जिन्ना-गांधी-नेहरू को ज़िम्मेदार ठहराने वाला मौजूदा सत्ता समूह पटेल और सावरकर का नाम जानबूझकर गोल कर रहा है। बंटवारे की वजह बनी और बंटवारे के दौरान फैली सांप्रदायिक नफ़रत को फिर से भड़काए जाने के प्रयास ख़ुद सत्ता वर्ग और उसके समर्थकों की तरफ से हो रहे हैं। इससे सावधान रहने की ज़रूरत है।यह बात भूलनी नहीं चाहिए कि ख़ुद को सनातनी हिंदू कहने वाले महात्मा गांधी की हत्या एक कट्टरपंथी हिंदू आतंकवादी नाथूराम गोड़से ने एक नफरत भरी सोच की वजह से की थी।मोदी की भाजपा और आरएसएस दिखावे के लिए कितना भी गांधी-गांधी का नाम जपते रहें लेकिन हम देख सकते हैं कि आज उस गोड़से को देशभक्त बताने के सुनियोजित प्रयास किये जा रहे हैं जिनकी अगुवाई मोदी की भाजपा की ही एक आतंकवाद की आरोपी सांसद कर रही है।रोजी-रोटी, ग़रीबी , शिक्षा, स्वास्थ्य , आर्थिक तरक्की जैसे असली मुद्दों से ध्यान भटकाकर समाज को धर्म के नाम पर बांटने और नफ़रत फैलाने का यह सारा खेल समझने की भी ज़रूरत है‌।पैदा यहीं हुआ हूँ यहीं पर मरूँगा मैं,वो और लोग थे आपके जैसे जो कराची चले गए।