मोहम्मद आरिफ नगरामी

मुुक्किरे इस्लाम हज़रत मौलाना सैयद अबुल हसन अली नदवी रह0 जिन्हें उर्फे आम में मौ0 अली मियां कहा जाता है। हिन्दुस्तान की पूरी तारीख के वाहिद आलिमे दीन थे जिन्होंने हिन्दुस्तान में बैठ कर न सिर्फ हिन्दुस्तान की बल्कि आलमे इस्लाम और अरब दुनिया के मुसलमानों की अपनी ग्रांकद्र अरबी तहरीरों के जरिये केयादत की। वह अरबी जबान के अदीब और उर्दू जबान के खतीब थे। उर्दू और अरबी में उनकी तसनीफात 200 के करीब हैं। वह मुफक्किर और मुदब्बिर भी थे।

सरजमीने हिन्द इस बात पर जितना फख्र करे कि बहुत कम है। कि उसने ऐसे गयूर उल्मा और दाईयाने इस्लाम जलीलुलमर्तबत दानिश्वर बलंद पाया मुसलेह, इस्लामी तफक्कुरे के निशानए इफ्तेखार इस्लामी आफाकियत के नकीब और वसीअ तर इस्लामी अखूवत के अमीन और मर्दानएहक के आगाह को जन्म दिया जिन्होंने तारीख की धारा बदल दिया और जिन्होंने तुर्रतमंदी से काम लेकर जाबिर व सफ्फाक, जालिम व सरकश हुक्मरानों का मुकाबला करके तारीखसाज कारनामा अंजाम दिया।

उन्हीं हस्तियों मेें नुमायातरीन नाम हजरत मौलाना अली मियां नदवी रह0 का नाम है जिनका आज पूरा आलमेइस्लाम बीसवां यौमे वफात मना रहा है। हल मौलाना अली मियां की रेहलत से दुनियाए इस्लाम बीसवीं सदी की एक ऐसी हस्ती से महरूम हो गयी जो खुसूसन बर्रेसगीर और अमूमन पूरी दुनिया के लिए दीनी बसीरत और इस्लामी तफक्कुर का निशाने इम्तियाज थे।

मौलाना अली मियां मरहूम एक नामवर आलमेदीन एक बलंदपबया मुसन्निफ, एक सहरअंगेज खतीब, एक मुनफरिद मुअर्रिख और सीरतनिगार थे लेकिन सब से बढ़ कर वह एक दाई, एक मुसलेह और मुरब्बी थे। इन तमाम अवसाफ के इजतिमा ने उनको बीसवीं सदी के इस्लामी अहया मे मेमारों में एक दरख्शां मकाम अता कर दिया। उनके यहां अल्लामा इकबाल का सोज व गुदाज मौलाना मौदूदी की अकलियत और तसव्वुरे दीन की जामियत अल्लामा शिबली और मौलाना सैयद सुलेमान नदवी का ज़ौके़ तारीख के और मौलाना अशरफ अली थानवी, मौलाना इलयास, मौलाना अब्दुल कादिर रायपूरी, और हजरत मौलाना जकरिया साहेब की रूहानियत का इम्तेज़ाज़ नजर आता है।

मौलाना अली मियां का असल मौदान तारीख और दावत है। सीरत और इन्सानसाजी है। रूह की बेदारी और उम्मत की तरक्की के लिये असलाफ़ के नमूने का अहया थे। मौलाना अली मियां के यहां खानक़ाह, जेहाद और तजकिया और इनकेलाब दोनों धारे साथ साथ नजर आते हैं।

मौलाना अली मियां मरहूम कितने अजीम इन्सान थे। हिन्दुस्तान की पूरी तारीख उस शख्सियत की नजीर पेश करने से क़ासिर है। यह ही वह शख्सियत थी जिसने अपनी फरासते ईमानी और अकले खुदादाद से और खुद्दारी के साथ मुफाहिमत के मेज़ाज के ज़रिये बाबरी मस्जिद के मसले को शंकराचार्या, गवर्रनर, आंध्र प्रदेश, कृष्ण कांत और यूनुस सलीम और मौलाना अब्दुल करीम पारीख के साथ मिल कर आखिरी हल के करीब पहुंचा दिया था लेकिन हमारे मुफतियाने केराम और कायदीने एज़ाम का अल्लाह भला करे कि उन्होंने उसे नाकाम कर दिया। बाबरी मस्जिद भी हाथ से गयी और हजारों मुसलमानों का खून भी नाहक बहा।

हिन्दुस्तान की हालिया तारीख में जितने रूहानियत के ताजदार गुजरे हैं मौलाना इलयास कांधलवी, मौलाना हुसैन अहमद मदनी, शैखुल हदीस मौलाना मो0 जकरिया, मौलाना अब्दुल कादिर रायपूरी, आप सबके मन्जूरे नजर थे। सबके महबूब थे । हजरत शाह अब्दुल कादिर रायपूरी का मकूला मशहूर है कि अगर खुदा ने पूछा कि दुनिया से क्या लेकर आये हो तो मैं अली मियां को पेश कर दॅूगा।

शायद बहुत कम लोगों को इल्म होगा कि हुकूमते हिन्द ने दो बार मौलाना अली मियां को मुल्क का सबसे बड़ा कौमी सम्मन पदम भूषण और फिर भारत रत्न देना चाहा मगर आपने कबूल करने से सख्ती से इन्कार कर दिया।

आज हजरत मौलाना अली मियां रह0 हमारे दरमियान नहीं है। उनको इस दुनियाए फानी से आलमे जावेदानी की जानिब रूखसत हुये बीस साल का अरसा गुजर चुका है। आज भी वह दिन और वह याद ताजा है। जब थोडी देर के लिये नब्जे काएनात थम गयी थी और इन्सानियत थर्रा उठी थी और काबिले दीद मंजर तो वह था जब हरम शरीफ में मुख्तलिफ ममालिक के रहने वाले तीस लाख अफराद गायबाना नमाजे जनाज़ा अदा कर रहे थे। मौलाना अली मियां आज हमारे दरमियान नहीं हैं लेकिन उनका मिशन न सिर्फ जिन्दा है बल्कि जारी व सारी है। उसकी वजह यह है कि अली मियां जिन्दिगी भर कायनाते इन्सानी के सबसे बडे मुहसिन हजरत मोहम्मद सल0 के उस्वा और सुन्नते रसूल और सहाबे केराम की इत्तेबा करते रहे।

इस वक्त हमारा मुल्क शदीद बोहरानी दौर से गुजर रहा है। इस वक्त ऐसी मुतवाजिन केयादत की जरूरत है जिसका जेहन इन्तेकाम और दिले अस्बीअत से खाली हो और जो बनी नव इन्सान के लिये फिकरमंद हो। इस वक्त एक नयी तहरीक बरपा करने की जरूरत है। मौलाना अली मियां की तहरीक प्यामे इन्सानियत ऐसी ही एक तहरीक थी। किस हालात मेें हमेें प्यामे इन्सानियत के मोमासिल एक मुनज्जम तहरीक की जरूरत है और ऐसी तहरीक बरपा करने के लिये ऐसे दिल की जरूरत है जैसा दिल मौलाना अली मियां नदवी रह0