नई दिल्ली: अडाणी ग्रुप को पनडुब्बी ठेका देने के मुद्दे पर रक्षा मंत्रालय और नौ सेना आमने-सामने हैं। 45000 करोड़ रुपये के इस 75-आई प्रोजेक्ट के लिए अडाणी डिफेंस और हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड (एचएसएल) जॉइंट वेंचर के तहत आवेदन किया था जिसे नेवी ठुकरा चुकी है। एक तरफ नेवी इसके विरोध में है तो वहीं दूसरी तरफ रक्षा मंत्रालय का कहना है कि इस तरह के ज्वॉइंट वेंचर्स को मौका दिया जाना चाहिए। मंत्रालय का कहना है कि यह प्रोजेक्ट ‘मेक इन इंडिया’ के तहत सबसे बड़े डिफेंस प्रोजेक्ट में से है।

इकनॉमिक टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक ‘मेक इन इंडिया’ के तहत सबसे बड़े डिफेंस प्रोजेक्ट के लिए पांच आवेदन सामने आए थे जिसमें से नेवी की ‘एम्पॉवर्ड कमेटी’ ने दो को चुना है। इसमें मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड और लारसन एंड टूब्रो शामिल हैं। इन दोनों को ही सबमरीन बनाने में अच्छा अनुभव है। ‘एम्पॉवर्ड कमेटी’ के सुझाव को दरकिनार करते हुए सरकार अडाणी जेवी को भी 75-आई प्रोजक्ट के सौदे के लिए चुन रही है।

दोनों के बीच विवाद की यही वजह है। डिपॉर्टमेंट ऑफ डिफेंस प्रोडक्शन ने सुझाव दिया है कि एचएसएल-अडाणी ज्वॉइंट वेंचर को भी शामिल किया जाना चाहिए। बता दें कि हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड डिपॉर्टमेंट ऑफ डिफेंस प्रोडक्शन के अधीन है। वहीं सरकार के इस प्रोजक्ट के लिए अडाणी जेवी को चुनने पर कांग्रेस जमकर हमलवार है। कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रही है।