नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कण्डेय काटजू ने कहा है कि देश की 80% आबादी साम्प्रदायिक है और संविधान सिर्फ कागज का एक टुकड़ा है। पूर्व जस्टिस ने ‘punjabtoday.in’ में एक लेख लिखा है। इस लेख में उन्होंने लिखा है कि ‘संविधान की प्रस्तावना यह कहती है कि हिन्दुस्तान एक धर्मनिरपेक्ष देश है और आर्टिकल 25 तथा 30 भी यहां लागू है लेकिन सच क्या है? सच यह है कि संविधान सिर्फ एक कागज का टुकड़ा है और जमीनी हकीकत यह है कि भारत एक बड़ा सांप्रदायिक देश है। यहां के 80 प्रतिशत हिंदू सांप्रदायिक हैं और 15-16 फीसदी मुस्लिम भी…ऐसा क्यों? इसकी गहरी समीक्षा किये जाने की जरुरत है।’

पूर्व जस्टिस ने लिखा है कि ‘धर्मनिरपेक्षता, इंडस्ट्रियल सोसायटी के लक्षण हैं, यह सामंती या अर्ध सामंती सोसायटी के लक्षण नहीं हैं। भारत में सामंती अर्थव्यवस्था आजादी मिलने के बाद जमींदारी के खत्म होने के बाद नष्ट हो गई। हालांकि अभी भी कई लोग सामंती मानसिकता के शिकार हैं। जातिवाद और सांप्रदायिकता सामंती ताकतें हैं जो अभी भी हमारे समाज में है। जबकि भारत अभी भी एक अर्द्ध सामंती देश है। काटजू ने आगे लिखा है कि सामंती समाज कृषि पर आधारित समाज है जिसमें लोग छोटे ग्रुप में हैं और बड़े ग्रामीण क्षेत्रों में फैले हुए हैं। जबकि इंडस्ट्रियल सोसायटी में लोगों का ग्रुप बड़ा है और यह लोग शहरों में फैक्ट्री, कार्यालय या अन्य स्थानों पर कार्यरत हैं।

काटजू ने लिखा कि ‘जब गौरक्षकों के द्वारा किसी मुस्लिम की लिंचिंग की जाती है तो कुछ हिंदू खुश भी होते हैं। नागरिकता संशोधन कानून पर अपनी बात रखते हुए काटजू ने आगे लिखा है कि देश में अभी जो प्रदर्शन चल रहा है उसमें ज्यादातर प्रदर्शकारी मुस्लिम हैं। जो हिंदू इस आंदोलन को सपोर्ट कर रहे हैं उनकी संख्या काफी कम है, हो सकता है सिर्फ 10 प्रतिशत हो। मेरा मानना है कि धर्मनिरपेक्ष देश में काफी उद्योग-धंधे होने चाहिए। लेकिन यह तब ही संभव है जब ऐतिहासिक रूप से एक साथ रहते आ रहे लोग देशभक्ति और आधुनिक मानसिकता के साथ एक नए राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करें।’