लखनऊ: अपने कार्यस्थान भातखण्डे संगीत संस्थान अभिमत विश्वविद्यालय में विख्यात सारंगी वादक पं.विनोद मिश्र कुलपति द्वारा ज्यादती और मानसिक प्रताड़ना का शिकार हुए। इसी तनाव में वे अवसाद में गये और अंततः आघात से बीमार होकर दिवंगत हो गये। वे देश का प्रतीनिधित्व करने दक्षिण अफ्रीका गये थे। उन्होंने विभागाध्यक्ष को सूचित कर दिया था और वह मौखिक अनुमति लेकर गये थे।

हाल मे भातखण्डे कुलपति डा.श्रुति सहडोलीकर काटकर की प्रेसवार्ता को ध्यान में रखते हुए और पं.विनोद मिश्र के परिवार को न्याय और अधिकार दिलाने के मकसद से आहत कलाकारों के दल ने यहा शीरोज हैंगआउट गोमतीनगर में पत्रकारों से बात करते हुए उक्त बातों के संग अन्य और भी बहुत से तथ्य रखे व कुलपति की कार्यप्रणाली व संस्थान में बरती जा रही अनियमितताओं पर सवाल उठाये।

कलाकारों ने कहा कि भारत सरकार द्वारा किसी सरकारी कर्मचारी को कार्यरत रहते हुए, सरकारी कार्य से विदेश भेजा जाता है तो क्या उस कार्य अवधि की तनख्वाह नहीं दी जाती? यदि दी जाती है तो पं.विनोद मिश्र जी को विदेश यात्रा के समय का वेतन क्यों नहीं दिया गया? जिस समय पं.विनोद मिश्र विदेश मे थे, उसी दौरान कुलपति भातखन्डे भी विदेश मे थी तो क्या वह ऑन ड्यूटी थी या छुट्टी ले कर गई थी? जिस प्रकार कुलपति को नेपाल के इस विदेशी कार्यक्रम हेतु छुट्टी चाहिये थी उसी प्रकर पं.विनोद मिश्र को भी छुट्टी चाहिये थी विदेश के सरकारी कार्यक्रम के लिये। पं.विनोद मिश्र जी को दो फरवरी 2018 को वापस आन था। उन्हांेने दो फरवरी तक की छुट्टी का आवेदन किया था लेकिन वह 5 फरवरी तक नहीं गये। उनका निलम्बन दो फरवरी 2018 को दे दिया गया। क्या इसका फैसला विश्वविध्यालय की प्रबंध समिति ने 31 जनवरी 2018 को ही बैठक में कर लिया था? इतनी जल्दी थी निलम्बन की कि उन्हें भातखन्डे संस्थान आने पर कोई कारण बताओ नोटिस भी नहीं दिया गया, सीधे निलम्बित ही कर दिया।

कलाकारों ने बताया कि कुलपति का कहना है कि पं.विनोद मिश्र की ड्यूटी भातखंडे संस्थान के सेमिनार मे लगी थी। जबकि भातखन्डे संस्थान मंे चार अन्य रईस अहमद ,महेश्वर दयाल नागर, अनीष मिश्र, निशान अब्बास भी सारन्गी वादक थे। सेमिनार में केवल पं.विनोद मिश्र ही क्यांे जरूरी थे ? किसी की भी ड्यूटी लगाई जा सकती थी। यदि उस समय विनोद जी बीमार होते तो क्या उन्हें छुट्टी नहीं मिलती?

कलाकारों ने कहा कि कुलपति पं.विनोद मिश्र अपने कार्यक्रम में नेपाल ले जाना चाहती थीं पर पं.विनोद मिश्र जाकर दूसरे कार्यक्रम में साउथ अफ्रीका चले गये। इसे कुलपति ने अपना अपमान मान कर बिना किसी अवमानना नोटिस के सीधे निलम्बित कर दिया।

कलाकारों ने सवाल उठाया कि क्या पं.विनोद मिश्र ने भारत सरकार के आदेश को मानकर इतनी बडी गलती कर दी की एक विश्व स्तर के कलाकार को तीन वर्ष तक भातखन्डे कुलपति ने इतना मानसिक रुप से प्रताड़ित किया कि वह कलाकार आज हमारे बीच नहीं है। कलाकारों ने बताया कि कुलपति कहती हैं वह सिर्फ राजभवन का आदेश मानती है तो पं.विनोद मिश्र के जिस निलम्बन को राजभवन ने निरस्त कर दिया था उसे कुलपति ने क्यों नही माना? मतलब साफ है कि कुलपति का मकसद फिर अवहेलना कर पं.विनोद मिश्र को प्रताड़ित करना था। कलाकारों ने बताया कि कुलपति ने पं.विनोद मिश्र को स्पष्ट निर्देश दिये थे कि वह निलम्बन अवधि के समय कोई भी धनार्जन का कार्य नहीं कर सकते। एक कलाकार जिसे वेतन न मिल रहा हो, वह परिवार के भरण-पोषण के लिये कोई अन्य कार्य ना करे यह बताता है कि वह एक कलाकार से शत्रुतापूर्वक व्यवहार कर रही थीं।

कलाकारों से सवाल उठाया कि पं.विनोद मिश्र को कनिष्ठ प्रवक्ता पद देकर वेतन संगतकर्ता का ही क्यों दिया जाता रहा, यदि पद दिया तो पद का वेतन क्यों नहीं बढ़ाकर दिया गया?

कलाकारों ने बताया कि कुलपति ने राजभवन के आदेश को तो नहीं ही माना और जब पं.विनोद मिश्र को कोर्ट के जरिये स्थगनादेष मिला तो कुलपति ने पं.विनोद मिश्र को पदभार ग्रहण करने के बाद भी संस्थान में उनको उनके कार्य से दूर रखा। भातखन्ड़े संस्थान में पं.विनोद मिश्र के रोज आने पर उन्हें एक ही कमरे में पांच घन्टेे बैठाये रखा गया, सांरगी वादक को साज बजाने नहीं दिया क्यों?

कलाकारों मे शामिल उनकी बेटी प्रीति मिश्रा ने कहा कि कुलपति जिस नौ पेज की सारगर्भित आख्या के आधार पर पं.विनोद मिश्र को निलांबित करने की बात करती हैं, वह पत्रकारों और हम पारिवारिक सदस्यों को पारदर्शिता के आधार र उपलब्ध होनी चाहिए।

भातखंडे मे पिछले तीन वर्ष से सारंगी का कोई भी शिक्षक नहीं है तो बीपीए और एमपीए की क्लास कौन ले रहा है? किस आधार पर फर्जी डिग्री बाटी जा रही है और भातखंडे के इतिहास को धुमिल किया जा रहा है? अन्य अनियमितातओ की बात करे तो। नये आवेदन लिये जा रहे है पुरानो को सैलरी नही दे रही है। तीन वर्षो से कई लोगांे सौरभ ,मनोज, अनीस आदि को वेतन नही मिला हैं। शासन भी इन नियुक्तियों को नहीं मानता। संस्थान के विद्यार्थियों से सेमिनार के लिए दो से ढ़ाई हजार रूपये लिए जाते हैं जिसका कोई ब्यौरा नहीं है। डा.सृष्टि माथुर और मनोज जैसे अन्य लोगों की जो नियुक्तियां जो हुई हैं उन्हें मात्र वेतन ही दिया जाता है अन्य कोई भत्ता नहीं मिलता।

कलाकारों ने सवाल उठाया कि नियमानुसार किसी विश्वविद्यालय का कुलपति वही हो सकता है जो एक निश्चित अवधि तक किसी भी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रह चुका हो, वर्तमान कुलपति ग्यारह वर्षो से भातखण्डे विश्वविद्यालय की कुलपति किस आधार पर है?

कलाकारों का कहना था कि एक तरफ भातखण्डे विष्वविद्यालय की कुलपति का कहती हैं कि जो नियुक्तियां हुई हैं वह शासन के द्वारा की गयी है और उनका फैसला शासन करेगा तो फिर पं. विनोद मिश्र के निलम्बन का फैसला विश्वविद्यालय प्रशासन ने क्यों किया, यदि पं.विनोद मिश्र के निलम्बन को निरस्त करने का फैसला भी राज्यपाल ने कर दिया था तो कुलपति ने उस फैसले का पालन क्यों नहीं किया?