नई दिल्ली: सरकार भले ही अपनी तमाम स्कीमों के जरिए रोजगार के अवसर बढ़ाने के दावे कर रही हो, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। खुद सरकार की ओर से ही संसद में पेश किए गए डेटा के मुताबिक इस साल सरकारी स्कीमों से रोजगार सृजन का आंकड़ा बीते वित्त वर्ष के मुकाबले कम रह सकता है। रोजगार सृजन को लेकर केंद्र सरकार की फ्लैगशिप स्कीमों प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) और राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के अपेक्षित परिणाम नहीं नजर आ रहे।

केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष गंगवार की ओर से पेश किए गए डेटा के मुताबिक 2018-19 में सरकारी स्कीमों से 5.9 लाख रोजगार के अवसर पैदा हुए, जबकि मौजूदा फाइनेंशियल ईयर में यह आंकड़ा 31 दिसंबर तक 2.6 लाख तक ही पहुंचा था। साफ है कि बाकी 3 महीनों यानी मार्च तक इसका पिछले साल के स्तर तक पहुंचना संभव नहीं है। 2017-18 की बात करें तो सरकारी स्कीमों से 3.9 लाख लोगों को रोजगार मिला था।

2014 के बाद से अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन: दरअसल प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना सीधे तौर पर किसी तरह की नौकरी देने की स्कीम नहीं है। यह क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी प्रोग्राम है, जिसका संचालन लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय की ओर से चलाया जा रहा है। खादी ग्रामोद्योग आयोग की मदद से चलने वाली इस स्कीम से मिलने वाले रोजगारों की संख्या मौजूदा वित्त वर्ष में 2014 के बाद से सबसे कम है।

असम और जम्मू-कश्मीर में सबसे कमजोर प्रदर्शन: राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन की बात करें तो इस स्कीम के तहत फाइनेंशियल ईयर 2018-19 में 1.8 लाख लोगों को रोजगार मिला था, लेकिन अब इस साल जनवरी तक के आंकड़ों के मुताबिक महज 44,000 लोगों को ही फायदा मिल सका है। प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना के तहत 2017-18 में 1,15,416 लोगों को रोजगार के मौके मिले थे, जबकि 2016-17 में यह आंकड़ा 1,51,901 का था। इस स्कीम के लाभार्थियों की संख्या में सबसे बड़ी गिरावट असम और जम्मू-कश्मीर में आई है। इसके अलावा राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन की बात करें तो गुजरात और मध्य प्रदेश में इसकी परफॉर्मेंस सबसे कमजोर है।