लखनऊ: उर्दू के मशहूर और बहुत मुमताज़ सहाफी हुसैन अमीन साहब का आज शाम एक लम्बी बीमारी के बाद इन्तिक़ाल हो गया वह लगभग 75 साल के थे। कहा जाय तो हुसैन अमीन पत्रकार थे उनके पिता अमीन साहब जंगे आज़ादी के समय अपनी न्यूज़ एजेंसी आमिर खुसरो न्यूज़ एजेंसी चलाते थे और उस समय के उर्दू के सभी अख़बारों में लखनऊ से जंगे आज़ादी से संबंधित खबरों के अलावा समाजी अदबी और जरायम की खबरें भी भेजते थे और जंग आज़ादी में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे। हुसैन अमीन साहब ने वहीँ से खबर नवीसी के गुर सीखे उनके बड़े भाई मुबीन अमीन साहब पायनियर के बड़े पत्रकार थे। अपनी तालीम पूरिओ कर के हुसैन अमीन साहब दैनिक क़ौमी आवाज़ से जुड़े और उसके लखनऊ एडिशन के बंद होने तक उसे जुड़े रहे। वैसे तो हर प्रकार की खबरों को लिखने पर उनकी पूरी कमांड थी लेकिन मुसलिम समाज से जुडी खबरों पर उसकी बड़ी अथार्टी थी और दुसरे शहरों के बड़े अखबार भी उनसे खबरें मांगते रहते थे।

क़ौमी आवाज़ नेशनल हेराल्ड और नवजीवन के लगभग 400 के अमले में हुसैन साहब सब से well dressed रहते थे हमेशा पेंट शर्त और जाड़ों सूट टाई के बगैर शायद ही कभी ने उनको किसी और ड्रेस में देखा हो। उनकी एक और बड़ी सिफत थी की वह दफ्तर की हर प्रकार की सयासत से बिलकुल अलग रहते थे साल भर बाद यूनियन के चुनाव में वोट देने के अलावा वह कोई सरगर्मी नहीं दिखाते थे शाम को दफ्तर आना रिपोर्ट फाइल करना एक ग्लास चाय पीना थोड़ी देर इधर उधर की बात चीत और उनका काम खत्म। उस ज़माने में क़ौमी आवाज़ सम्पादकीय में एक चकल्लस खूब चलती थी किसी के भी जिस्म पर नया कपडा देख कर उस से चाय पीने की कसर ज़बरदस्ती किसी की शर्ट किसी की पेंट किसी का कुरता नया बता के उस से चाय पि जाती थी एक दिन हुसैन साहब के पीछे पीछे चाय वाला छीके में कई ग्लास चाय ले के आया बोलै हुसैन अमीन साहब का आर्डर थे उनसे पुछा गया किस खुशी में चाय पीला रहे बोले मेरी बन्याइन नई है

हुसैन अमीन साहब ने अपनी पूरी ज़िंदगी उर्दू सहाफत के लिए वक़्फ़ कर दी थी नदवा का पत्रकारिता विभाग में उन्होंने शिक्षण कार्य भी किया और तक खबरें लिखते रहे यहां तक की आज खुद खबर बन गए।